Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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वीर निर्वाण सम्वत्
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प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत् में १८ वर्ष बढ़ाने की भी कोई जरूरत नहीं रहती उसे क्यों न ठीक मान लिया जाये, इसका कोई समाधान नहीं होता ।
४ - ' इसके सिवाय जार्ल चापेंन्टियरकी यह आपत्ति बराबर बनी ही रहती है कि वीर निर्वाणसे ४७० वर्षके बाद जिस विक्रम राजाका होना बतलाया जाता है उसका इतिहास में कहीं भी कोई अस्तित्व नहीं है । परन्तु विक्रम सम्वत्को विक्रमकी मृत्युका सम्वत् मान लेने पर यह आपत्ति कायम नहीं रहती क्योंकि जाल चापेन्टियरने वीर निर्वाणसे ४१० वर्षके बाद विक्रम राजाका राज्यारम्भ होना इतिहास से सिद्ध माना है और उसका राज्यकाल ६० वर्ष तक रहा है । इससे प्रचलित विक्रम सम्वत्को उसका मृत्यु सम्वत मानने से यही समय उसके राज्यारम्भका आता है । मालूम होता है जाल चापेंन्टियर के सामने विक्रम सम्वत् के विषयमें विक्रमकी मृत्युका सम्वत् होनेकी कल्पना ही उपस्थित नहीं हुई और इसीलिये आपने वीर निर्वाणसे ४१० वर्षके बाद ही विक्रम सम्वत्का प्रचलित होना मान लिया और इस भूल तथा गल्ती के आधार पर ही प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत् पर यह आपत्ति कर डाली कि उसमें ६० वर्ष बढ़े हुए हैं इसलिए उसे ६० वर्ष पीछे हटाना चाहिये ।
इस प्रकार मुख्तार साहबने अपने लेख में एक ओर स्व० जायसवाल के १८ वर्ष बढ़ानेके सुझावको और दूसरी ओर जाल चापेंन्टियर के ६० वर्ष घटानेके सुझावको सदोष बतलाकर प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत्को ही ठीक ठहराया ।
हम पहले लिख आए हैं कि श्री जायसवालने जार्ल चार्जेन्टियर के इस सुझावका कि प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत् में ६० वर्ष अधिक
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