Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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बीर निर्वाण सम्वत्
२८६ नन्दोंके राज्यका काल १५५ वर्ष बतलाया है । पुराणों के अनुसार नन्दवर्धनसे लेकर अन्तिम नन्द पर्यन्त १२३ वर्ष होते हैं । इतने वर्ष तक नन्दोंने राज्य किया । ३२ वर्ष जो अधिक हैं (१२३-३२-१५५ ) वे हमें उदायीके राज्यसे पहले अथवा दूसरे वर्षके आगे लाकर छोड़ देते हैं, अर्थात् पालक वंशकी तरह ध्यान खींचने लायक एक दूसरा काल उदायीके राज्यारोहण से प्रारम्भ होता है। किन्तु पुराणों के अनुसार अजात शत्रु के छठे वर्ष (पालकका राज्यरोहण काल ) और उदायीके राज्याभिषेकके बीचमें अपनेको ६४ वर्षका अन्तराल छोड़ना चाहिए । जब कि जैन काल गणनाके अनुसार पालकका राज्य काल ६० वर्ष ही है। इस तरह चन्द्रगुप्तके समयमें पुनः ४ वर्ष अन्तर आता है। और इससे चन्द्रगुप्त महावीरके निर्वाणके २१५ अथवा २१६ वर्ष पश्चात् गद्दीपर बैठा। इस प्रकार जुदी जुदी तारीखें आती हैं। मौर्योंके राज्य कालको दो वर्षसमूहोंमें विभाजित कर दिया है -१०८ और ३०। उसमें १०८ वर्ष मौर्य वंशके हैं और ३० वर्ष पुष्यमित्रके हैं। उसके पश्चात् बलमित्र भानुमित्रके ६० वर्ष सम्मिलित किये हैं। इस गणनाके अनुसार हम महावीर निर्वाणके पश्चात् ४१३ वर्ष तक पहुँच जाते हैं। इसके पश्चात् ४० वर्ष नहपानका राज्य काल बतलाया है। उसके पश्चात् १३ वर्ष गर्द भिल्लके राज्यके हैं और ४ शक राजा के हैं इन सबका जोड़ ४७० होता है। यहाँ गाथाओंकी गणना समाप्त हो जाती है। विक्रम संवत् और इस गणनाका परस्पर सम्बन्ध मिलाने से ऊपर लिखे अनुसार १८ वर्ष का अन्तर आता है।
हेमचन्द्राचार्यके द्वारा दत्त जिस काल गणनाको आधार मानकर जेकोबी तथा चान्टियरने प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत्में
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