Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भगवान् महावीर
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निर्वाणकाल तो ठीक गणनाके अनुसार है जब कि महावीर का निर्वाण काल अनुमानके आधार पर कल्पित है । अतः उसमें ६० वर्ष कम करना चाहिये।
___इसके पश्चात् स्व. काशीप्रसाद जी जायसवालने विहार उड़ीसा रिसर्च सोसायटी के जर्नल में ( १६१५ सितम्बर) शैशुनाक और मौर्यकाल गणना' शीर्षकसे एक विद्वत्तापूर्ण निबन्ध लिखा। उसके अन्तमें उन्होंने महावीर और बुद्धके निर्वाण समयकी भी विद्वत्तापूर्वक विवेचनाकी तथा प्राचीन गाथाओं की गणनाको सप्रमाण सिद्ध करके जाल चापेन्टियरकी युक्तियों का निरसन किया। किन्तु उन्होंने भी १८ वर्षकी भूल बतला कर प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत्में १८ वर्ष बढ़ानेका सुझाव दिया।
प्रचलित काल गणना पर प्रकाश डालनेके लिये यहाँ हम स्व० जायसवाल जीके मुद्दों को भी दे देना उचित समझते हैं।
१-अंगुत्तर निकायमें जो यह उल्लेख मिलता है कि जब महावीरका निर्वाण पावामें था तब बुद्ध जीवित थे, यह उल्लेख पूर्ण रूपसे मानने योग्य है। पहले किये गये ऊहापोहसे यह निष्कर्ष निकलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्यके राज्यारोहणसे २१६ वर्ष पूर्व महावीरने निर्वाण पाया। इस प्रकार चन्द्रगुप्त महावीर निर्वाणसे २१६ वर्ष पश्चात् और बुद्ध निर्वाण से २१८ वर्ष पश्चात् गद्दी पर बैठा। इस तरह जैनोंकी काल गणनाके अनुसार चन्द्रगुप्त ईस्वी सन्से ३२६ या ३२५ वर्ष पूर्व गहीपर बैठा । इसमें चन्द्रगुप्त
१-ये मुद्दे हम 'जै० सा० सं०, खं० १, अं० ४ से साभार उद्धृत
करते हैं । लेखक
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