Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भगवान् महावीर
२८५ शिष्ट रहते हैं। यही वीर निर्वाणके बाद विक्रम सम्वत्की प्रवृत्ति का काल है। इस प्रकार जैन ग्रन्थोंके आधार पर भारतमें वर्तमानमें प्रचलित विक्रम सम्वत्के प्रारम्भसे ४७० वर्ष पहले तथा ईस्वी सन् से ५२७ वर्ष पहले वीर भगवान् का निर्माण हुआ था। दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंके अनेक ग्रन्थोंके आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है।
परन्तु प्रसिद्ध जैन इतिहासज्ञ स्व० डा० हर्मन जेकोबीने श्री हेमचन्द्राचार्यके एक उल्लेखसे प्रेरित होकर प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत्में शंका उपस्थित की थी । तत्पश्चात् जाल। चारपेन्टियर नामक एक विद्वानने इण्डियन एण्टिक्वेरीके ४३ वें भागमें इस विषय पर एक विस्तृत निबन्ध लिखा था। उसमें उन्होंने डा० जेकोबीके मतका समर्थन और सम्पोषण करते हुए यह सिद्ध करनेका प्रथम प्रयास किया था कि महावीरका निर्वाण विक्रम सम्वत्से ४७० वर्ष पूर्व नहीं किन्तु ४१० वर्ष पूर्व हुआ था। अतः उन्होंने यह सुझाव दिया था कि परम्पराके अनुसार जो काल गणना की जाती है उसमें से ६० वर्ष कम कर देने चाहिये।
जाल चापेन्टियर के मुख्य मुद्दे इस प्रकार थे
१-मेरुतुंगाचार्य आदि ने विचारश्रेणि आदि ग्रन्थों में जो प्राचीन गाथाएँ दी हैं उनमें निर्दिष्ट राजाओं में कोई पारस्परिक
१-अपने लेखके नोटमें लेखकने महावीर निर्वाण पर लिखे गये लेखोंकी सूची इस प्रकार दी है-राईस, इं० एं० जि० ३, पृ० १५७ । इ. थामस, जि० ८, पृ० ३० । पाठक, जि० १२, पृ० २१ । और लिखा है कि जेकोबीके लेखके पश्चात् ये सब लेख स्वतः रद्द हो गये।
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