Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका है अंगुत्तर निकाय-अट्ठकथामें वैशालीकी समृद्धिका वर्णन करते हुए लिखा' है-"उस समय वैशाली ऋद्ध स्फीत ( =समृद्धिशाली) बहुजना= मनुष्योंसे आकीर्ण, सुभिक्षा ( =अन्नपान संपन्न ) थी। उसमें ७७७७ प्रासाद, ७७७७ कूटागार, ७७७७ आराम, ७७७७ पुष्करिणियां थीं।"......." राजगृहका नैगम वैशालीमें अपना काम समाप्त कर फिर राजगृह लौट गया । लौटकर जहाँ राजा मगध श्रेणिक बिंबसार था, वहाँ गया। जाकर राजा बिम्बसारसे उसने वैशालीकी समृद्धिका वर्णन किया। ___ उक्त वर्णनसे प्रकट होता है कि राजगृहीसे भी वैशालीका वैभव महान् था। और राजगृहीके स्वामी बिम्बसार श्रेणिकने वैशालीके वैभव, लिच्छवियोंके प्रभुत्व तथा वैशाली नरेश चेटककी पुत्रीके रूप-गुणसे आकृष्ट होकर अभय कुमारके द्वारा चेलनाका हरण कराया और उसके साथ विवाह किया। यह घटना भी वैशाली और उसके स्वामीके ही महत्त्वको प्रकट करती है। यदि चेटक श्रेणिकके साथ अपनी पुत्रीके विवाहके लिये राजी होता तो चेलनाका हरण करानेकी आवश्यकता न होती। श्रेणिकके पश्चात् जब उसी लिच्छवि कुमारी चेलनाका पुत्र कुणिक ( अजात शत्रु ) गद्दीपर बैठा तो उसने वज्जियों के इस गणतंत्रको नष्टभ्रष्ट कर डाला।
१-बु० च०, पृ० २९७ ।
२-डा. रायचौधरीने लिखा है-'प्रो० रे डेविडस तथा कनिंघमके अनुसार वजियोंमें अाठ जातियां सम्मिलित थीं-जिनमें विदेह, लिच्छवि, ज्ञात्रिक और वजी सबसे प्रमुख थे । (पो० हि० एं० इ, पृ० ७३-७४ । डा० प्रधानका कहना है कि इस संगठनमें नौ
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