Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
२४२
जै० सा० इ० पूर्व पीठिका
थे । कल्पसूत्रकी सुबोधनी टीकामें लिखा है कि महावीरने मरीचिके भव में नीचगोत्र कर्मका बन्ध किया था उसके कारण महावीरको ऋषभदत्त ब्राह्मणकी देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में रहना पड़ा । अतः गर्भपरिवर्तनकी घटनामें विशेष तथ्य प्रतीत नहीं होता । सम्भवतया इसीसे दिगम्बर' परम्परामें इसका संकेत तक नहीं मिलता ।
विवाह
दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर अविवाहित ही रहे । न उन्होंने स्त्रीसुख भोगा और न राजसुख । किन्तु श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार यद्यपि उन्होंने राजपद ग्रहण नहीं किया किन्तु विवाह करके स्त्रीसुख अवश्य भोगा । उनकी पत्नीका नाम यशोदा था और उससे एक कन्या भी हुई थी जो जमालिसे विवाही थी ।
किन्तु आवश्यक नियुक्तिकी गाथासे ऐसा प्रतीत होता है कि महावीर अविवाहित ही रहे थे। लिखा' है- "महावीर, अरि
१ - - ' ततश्च्युत्वा तेन मरीचिभवबद्धन नीचै गोत्रकर्मणा .... ऋषभदत्तस्य ब्राह्मणस्य देवानन्दायाः ब्राह्मण्याः कुक्षौ उत्पन्नः' ।
२ – कै० हि०, जि० १, पृ० १५६ में दिगम्बरोंको लक्ष्य करके लिखा है कि गर्भ परिवर्तन के सम्बन्ध में उनका मत अधिक युक्त है। ३ - - ' वीरं श्ररिनेमिं पासं, मल्लिं च वासुपुज्जंच ॥
.
ए ए मोच ण जिणे श्रवसेसा श्रासि रायाणो ॥ २४३ ॥ रायकुले विजाया विसुद्धवंसेसु खत्तियकुलेसु ।
न च इच्छियाभिसेया कुमारखासंमि पव्वइया' || २४४ ||
- श्रा० नि० ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org