Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भगवान् महावीर
प्रथम धर्मदेशना
केवलज्ञान उत्पन्न होते ही देवतागण श्राकर केवलज्ञानी तीर्थङ्करका ज्ञानकल्याणक महोत्सव मनाते हैं, उनकी पूजा करते हैं और इन्द्रकी आज्ञासे उनके उपदेशके लिये समवसरणकी रचना करते हैं, ऐसी सामान्य जैन मान्यता है । तदनुसार ज़भकाके पास ऋजूकूलनदीके तट पर भगवान महावीरको केवलज्ञान उत्पन्न होने पर देवतागरणने आकर उनकी पूजा की ज्ञानकल्याणक महोत्सव मनाया। समवसरणकी रचना भी हुई। परन्तु इस प्रथम समवसरणमें महावीर भगवानकी वाणी नहीं खिरी और इसलिये उस दिन धर्मतीर्थका प्रवर्तन नहीं हो सका ।
० आवश्यक नियुक्ति में लिखा है कि शेष सभी जैन तीर्थंकरोंका तीर्थ प्रथम समवसरण में उत्पन्न हुआ, किन्तु जिनेन्द्र -महाबीरका तीर्थं द्वितीय समवसरण में उत्पन्न हुआ । श्व ेताम्बर साहित्य में ( स्था० १० ठ० ) दस अच्छेरे 'आश्चर्य' बतलाये हैं, जिनमें से एक महाबीर भगवान पर उपसर्ग होना, दूसरा गर्भपरिवर्तन और तीसरा है अभव्यसभा । अर्थात् जृम्भिका ग्राममें महाबीर केवलज्ञान उत्पन्न होने पर समवसरणकी रचना हुई और उसमें देव मनुष्य तिर्यञ्च एकत्र भी हुए और कल्पका पालन करनेके ही लिये धर्मकथा भी हुई किन्तु किसीने भी व्रतधारण नहीं किये। महावीर से पूर्व अन्य किसी भी तीर्थङ्करके समयमें ऐसा नहीं हुआ । अतः यह घटना आश्चर्य जनक होनेसे छेरा (चर्य ) कहलाई ।
१ 'तित्थं चाउव्वणो संघो सो पदमए समोसरणे । उप्पण्णो उ जिणाणं वीरजिदिस्स वीयम्मि || "
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