Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भगवान महावीर
२७५ इस तरह भगवानके गणधरोंके विषयमें प्राचीन दिगम्बर साहित्य तथा श्वेताम्बर आगमोंसे इतनी जानकारी मिलती है। किन्तु आवश्यक नियुक्तिमें एक गाथाके' द्वारा ग्यारह गणधरोंके संशयोंका निर्देश किया गया है। इन संशयोंको दूर करनेके लिये ही वे ग्यारह व्यक्ति भगवान महावीरके समवसरणमें गये थे और संशय दूर होते ही उनके पादमूल में जिन दीक्षा धारण करके महावीर भगवानके शिष्य तथा गणधर बन गये थे। वे ग्यारह संशय इस प्रकार थे
१ जीव है कि नहीं ? २ कर्म है कि नहीं ? ३ शरीर ही जीव है या इससे भिन्न है ? ४ भूत-पृथिवी जल आदि है या नहीं ? ५ इस भवमें जीव जैसा होता है परभवमें वैसा होता है
कि नहीं? ६ बंध-मोक्ष है कि नहीं? ७ देव हैं कि नहीं? ८ नारकी हैं कि नहीं ? ह पुण्य पाप है कि नहीं ? १० परलोक है कि नहीं? ११ निर्वाण है कि नहीं ?
१-जीवे कम्मे तजीव भूय तारिसय बंधमोक्खे य । देवा णेरइय या पुण्णे परलोय णिवाणे ॥ ५६६ ॥
-श्राव. नि।
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