Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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• सा० इ०-पूर्व पीठिका से सम्पन्न था तथा सर्वाक्षर सन्निपाती-श्रुतके समस्त अक्षरोंका वेत्ता था।
भग० सू० (१४-७-५५१ ) से यह भी प्रकट होता है कि गौतम का भगवान महावीरके प्रति दृढ़ अनुराग था तथा उन दोनोंका पूर्व जन्मका सम्बन्ध था-आदि । __इस तरह दिगम्बर तथा श्वेताम्बर आगमोंसे इन्द्रभूति गौतम गणधरके सम्बन्धमें ही विशेष जानकारी मिलती है। उसके पश्चात् यदि किसी गणधरके सम्बन्धमें कुछ मिलता है तो वह हैं सुधर्मा । दिगम्बर परम्परामें भगवान महावीरकी शिष्य परम्परा को लिये हुए जितनी पट्टावलियाँ मिलती हैं उनमें इन्द्रभूतिके पश्चात् सुधर्माका नाम मिलता है। सुधर्मा' का ही दूसरा नाम लोहार्य अथवा लोहार्यका दूसरा नाम सुधर्मा था। सुधर्माके पश्चात् जम्बूका नाम आता है । दिगम्बर परम्पराके अनुसार इन्द्रभूतिसे ही सुधर्माको अंग और पूर्वका ज्ञान प्राप्त हुआ था। इस तरह दिगम्बर परम्परामें सुधर्माका नाम तो इन्द्रभूतिके पश्चात् आता है किन्तु उनके सम्बन्धमें अन्य कोई निर्देश नहीं मिलता। श्वेता० आगमोंसे भी सुधर्माके सम्बन्धमें कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती। केवल इतना ही निर्देश मिलता है कि जम्बूके प्रश्न के उत्तरमें सुधर्माने अमुक आगमका व्याख्यान किया।
१-'तेण वि लोहज्जस्स य लोहज्जेण सुधम्मणामेण । गणधर सुधम्मणा खलु जंबूणामस्स णिद्दिढ ॥ १० ॥
-ज. प० ।
२-क. पा०; भा० १, पृ० ८४ ।
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