Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
भगवान् महावीर
२४३ ष्टनेमि, पार्श्व, मल्लि और वासुपूज्यको छोड़कर शेष तीथङ्कर राजा थे। और ये पांचों तीर्थङ्कर यद्यपि राजकुलमें और विशुद्ध क्षत्रियवंशमें उत्पन्न हुए थे फिर भी उन्हें राज्याभिषेक इष्ट नहीं हुआ और उन्होने कुमार अवस्थामें ही प्रव्रज्या ग्रहण करली।"
आगे लिखा है-'जिहोने कुमार अवस्थामें प्रव्रज्या धारण की उन महावीर, अरिष्टनेमि, पाव, मल्लि और वासुपूज्यको छोड़कर शेष तीर्थङ्करोंने ही विषयोंक सेवन किया।' इसकी व्याख्या करते हुए टीकाकार मलयगिरिने लिखा है-'इस कथनका आशय यह है कि वासुपूज्य, मल्लि, महावीर, पार्श्वनाथ और अरिष्टनेमिके सिवाय शेष सब तीर्थङ्करोंने विषयोंका सेवन किया, किन्तु वासुपूज्य आदि पांच तीर्थङ्करोंने नहीं किया क्योंकि उन्होने कुमार अवस्थामें ही व्रतग्रहण कर लिया था।'
आगमोदय समितिसे प्रकाशित आवश्यकनियुक्तिकी मलयगिरि टीकामें विषयोंका सेवन न करने वाले पांच तीर्थङ्करोंमें महावीर स्वामिका नाम नहीं छपा है । यह छापेकी ही भूल मालूम होती है क्योंकि उक्त कथन कुमार अवस्थामें ही प्रव्रजित होनेवाले सभी तीर्थङ्करोंके सम्बन्धमें है।
१-'गामायारा विसया निसेविया ते कुमारवज्जेहिं ।
गामागराइएसु य केसि (सु) विहारो भवे कस्स' ॥२५५।। टीका--ग्रामाचारा नाम विषया उच्यन्ते, ते विषया निसेविताश्रासेविताः कुमारव :--कुमारभाव एव ये प्रव्रज्यां गृहीतवन्तः तान् मुक्त्वा शेषैः सर्वैस्तीर्थकृद्भिः । किमुक्त भवति ? वासुपूज्य-मल्लिस्वामिपार्श्वनाथ भगवदरिष्टनेमिव्यतिरिक्तः सर्वैस्तीर्थकृद्भिरासेविता विषयाः न तु वासुपूज्यप्रभृतिभिः, तेषां कुमारभाव एव ब्रतग्रहणाभ्युपगमात् ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org