Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका कूलपुर या कोल्लाग सन्निवेशमें प्रथम वार भिक्षा भोजन ग्रहण किया था। ___ पीछे बुद्धके द्वारा निर्दिष्ट जिन चार प्रकारकी तपस्याओंका निर्देश कर आये हैं उन चारोंका ही आचरण महावीरने किया था । दीक्षा लेते समय ही वे नग्न हो गये थे और उन्होंने अपने सिर और दाढ़ीके केशोंको स्वयं अपने हाथसे उखाड़कर फेंक दिया था। वे सदा अस्नान व्रत पालते थे और भूमि पर शयन करते थे। एकान्तवास उह प्रिय था। और वर्षाकालको छोड़कर सदा मौन विचरण करते थे। इस तरह उन्होने बारह वर्ष विताये थे।
इन बारह वर्षों में उन्हें जिन कष्टोंका सामना करना पड़ा. उपसर्गो को सहना पड़ा उनको पढ़कर भी चित्त चंचल हो उठता था। इसीसे बुद्धने कठोर तपस्याका मार्ग छोड़कर मध्यम मार्ग अपनाया था। किन्तु महावीर तो महावीर थे, उनकी दृढ़ता स्पृहणीय थी।
श्वेताम्बरीय आगमिक उल्लेखोंके अनुसार इन बारह वर्षों में एकाकी विहारी महावीरको अनेकों उपसर्गों और कष्टोंका सामना करना पड़ा। उनके कानोंमें कीले ठोके गये, सर्वाङ्गको धूलसे आच्छादित कर दिया गया, किन्तु महावीर अपने सन्मार्गसे विचलित नहीं हुए और न उन्होंने अपनी क्षमाशीलता और निर्वैर वृत्तिका ही परित्याग किया।
दिगम्बर उल्लेखके अनुसार जब वे उज्जैनमें ध्यानस्थ थे तब रात्रिमें उनके ऊपर घोर उपसर्ग किया गया। किन्तु वे अपने ध्यानसे विचलित नहीं हुए।
उनकी क्षमाशीलता और निर्वैर वृत्ति आदर्श थी। इसी
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