Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
२४७
भगवान् महावीर पोषक था। इस संघके एक आचार्य अपराजित सूरिने श्वेताम्बरोंकी उक्त मान्यताके सम्बन्धमें लिखा है.'भावनामें जो यह कहा है कि महावीर भगवान एक वर्ष तक वस्त्रधारी रहे उसके बाद अचेलक-नग्न हो गये, सो इसमें अनेक मत हैं। किन्हींका कहना है कि महावीरके कन्धेपर जिसने वस्त्र लटकाया था, उसने उसी दिन उस वस्त्रको ले लिया था। अन्य कहते हैं कि छै महीनोंमें वह वस्त्र कांटो वगैरहसे छिन्न भिन्न हो गया । कुछ कहते हैं कि कुछ अधिक एक वर्षके पश्चात् उस वस्त्रको खण्डलक ब्राह्मणने ले लिया। कुछ कहते हैं हवासे उड़ गया और महावीरने उसकी उपेक्षा कर दी। किन्हींका कहना है कि लटकाने वालेने उसे महावीर भगवानके कन्धेपर रख दिया। इस प्रकार अनेक मत होनेसे इसमें कुछ सार प्रतीत नहीं होता । यदि भगवान महावीरने सचेल लिंगको प्रकट करनेके लिये वस्त्रको ग्रहण किया था उन्हें उसका विनाश क्यों इष्ट हुआ ? सदा उसे धारण करना चाहिये था........तथा यदि महावीर भगवानको चेलप्रज्ञापना ( वस्त्रवाद ) इष्ट थी तो 'प्रथम' और अन्तिम जिनका धर्म अचेलक था' यह वचन मिथ्या ठहरता है । तथा 'नवस्थान' में कहा है -'जैसे मैं अचेल (नग्न) हूं वैसे ही अन्तिम जिन भी होंगे'
१-भ. श्रा०, गा० ४२१ की टीका में।
२-श्वेताम्बर साहित्य में लिखा है कि प्रथम जिन ऋषभदेव और अन्तिम जिन महावीरका धर्म बाचेलक्य-वस्त्ररहित था । किन्तु मध्यके बाईस तीर्थङ्करोंका धर्म सचेल भी था और अचेल भी था। यथा-आचेलक्को धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमगाणं जिणाणं होई सचेलो अचेलो व ॥ १२ ॥ पञ्चा, विव०१७ ।
Jain Educationa International
acional
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org