Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका राज घरानोंसे सम्बद्ध थे। और ये सब उस समयके सबसे अधिक शक्तिशाली राजा थे।
उस समय लिच्छवि कुमारियोंका पाणि पीडन करके लिच्छवियोंका जामाता बनना क्षत्रियोंके लिये बड़े सम्मानकी बात वसुमत्रकी पुत्री थी। अस्तु -चेटककी केवल दो कन्याश्रोंके सम्बन्धमें दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परामें ऐकमत्य है-दोनोंके अनुसार मृगावतीका विवाह कौशाम्बीके राजा शतानीकसे और प्रभावतीका विवाह राजा उदयनसे हुआ था। किन्तु दिगम्बर उदयनको कच्छ देशके रोरुक नगरका राजा बतलाते हैं और श्वेताम्बर सिन्धु सौवीर देशके वीतामय नामक नगरका राजा बतलाते हैं। यह सिन्धु सौवीर देश कहां था, इस विषयमें मतभेद हैं। डा० रे डेविडस् ने अपने मानचित्र' में सौवीरको काठियावाड़ के उत्तरमें और कच्छकी खाड़ीके एक अोरसे दूसरी ओर तक दिखलाया है । बौद्ध परम्पराके अनुसार सौवीर देशकी राजधानी रोरुक थी। ( कै० हि०, जि० १, पृ० १७३)। अतः दिगम्बर उल्लेखका कच्छ ही सौवीर जान पड़ता है और वहीके रोरुक नगरके स्वामी उदयनसे चेटककी पुत्री प्रभावती विवाही थी। श्वेताम्बरीय उल्लेख के अनुसार इस उदयनने अवन्ती नरेश चण्डप्रद्योत पर - जिसे चेटककी पुत्री शिवा विवाही थी, चढ़ाई की थी। इस युद्धका कारण यह था कि प्रद्योत उदयनकी एक जिनप्रतिभा तथा दासीको लेकर भाग गया था। उदयनने प्रद्योतके पास अपना दूत भेजकर कहलाया कि मुझे दासीकी परवाह नहीं है, किन्तु जिन मूर्ति लौटा दो। प्रद्योतने नहीं लौटाई । तब उदयनने उस पर चढ़ाई की और प्रद्योतको बन्दी बना लिया। (जै० ना० इ०, पृ० ६१ का टि०२)।
१-० ना०, इ, पृ०८६ ।
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