Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भगवान् महावीर
२३९ समझी जाती थी। और गुप्तकाल तक भी समझी जाती रही; क्योंकि ई० ३०८ में पाटलीपुत्र नगरके पास एक गांवके छोटेसे राजा चन्द्रगुप्तको लिच्छवि वंशकी कन्या कुमारदेवी विवाही थी। चन्द्रगुप्तने ऐसे महान् वंशकी कन्यासे विवाह होनेको अपना बड़ा गौरव माना। उसने अपने सिक्कोंपर लिच्छवियोंकी बेटीके नामसे अपनी स्त्रीकी भी मूर्ति अंकित करवाई। उसकी सन्तान बड़े गर्वसे अपनेको लिच्छवियोंका दौहित्र कहा करती थी। ___ सारांश यह है कि लिच्छवियों तथा वैशालीके राजवंशके द्वारा महावीरके द्वारा प्रचारित धर्मको सब ओर ठोस समर्थन मिला और सौवीर आदि देशोंमें जैन धर्म खूब फैला।
___ गर्भ परिवर्तन श्वेताम्बर परम्परा में भगवान महावीरके गर्भ परिवर्तनकी एक कथा प्रवर्तित है, जिसका निर्देश आचारांग, कल्पसूत्र तथा अन्य अनेक ग्रन्थोंमें पाया जाता है और इसलिये उसकी प्राचीनतामें सन्देहको स्थान नहीं है, क्योंकि मथुरा' से प्राप्त अवशेषोंमें, जो अवश्य ही ईस्वी सन् की प्रथम शतीके माने गये हैं गर्भ परिवर्तनकी घटना अंकित की गई है।
घटना इस प्रकार है-वैशालीके ब्राह्मण कुण्ड ग्राममें ऋषभ दत्त नामक ब्राह्मणकी पत्नी देवानन्दा रहती थी। उसने
१--डा० बहुलरने लिखा है-'एक जैन पाषाणखननमें नैगमेश, एक वाल तीर्थङ्कर और एक शिशुके साथ स्त्री अंकित है, यह एक अति प्रसिद्ध कथाका अंकन है, जिसमें एक देवता देवानन्दा और त्रिशलाके गर्भ परिवर्तन करता है, (जै० नां० इ०, पृ. २१)।
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