Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० पूर्व पीठिका मान रत्ती परगना (जि• मुजफ्फरपुर ) है। (बु० च०, पृ० ५२६, का टि०२)।
नाटपुत्त ( महावीर ) पर टिप्पणीमें राहुलजीने लिखा है'नाटपुत्त' ज्ञातपुत्र । ज्ञातृ लिच्छवियोंकी एक शाखा थी, जो वैशालीके आसपास रहती थी। ज्ञातृसे ही वर्तमान जथरिया शब्द बना है। महाबीर और जथरिया दोनोंका गोत्र काश्यप है। आज भी जथरिया भूमिहार ब्राह्मण इस प्रदेशमें बहुत संख्या में है। उनका निवास रत्ती परगना भी ज्ञात = नत्ती= लत्तीरत्तीसे बना है।' ( बु० च०, पृ० ११०, का टि०३)।
ऊपर उद्धृत जैन और बौद्ध उल्लेखोंके अनुसार कुण्डपुर या कुण्डग्राम विदेह देशमें वैशालीके निकट होना चाहिये । और चूंकि जिन ज्ञातृवंशी लिच्छवियोंके कुलमें महाबीरने जन्म लिया था, उनके वंशज आज भी जथरिया जातिके रूपमें बिहारके मुजफ्फरपुर जिले के रत्ती परगनामें निवास करते हैं, तथा मुजफ्फरपुर जिलेका बसाद ग्राम ही वैशाली था, अतः कुण्डग्राम भी उसीके निकट होना चाहिये। बौद्ध ग्रन्थोंका कोटिग्राम नातिका
और वैशालीके बीचमें अवस्थित था। सम्भव है वही जैन साहित्यका कुंडग्राम हो जैसा कि डा० याकोबीका अनुमान है। आधुनिक' अन्वेषकोंका प्रायः यही मत है कि मुजफ्फरपुर जिलेमें स्थित वसाढ़ ही प्राचीन वैशाली है। अब कुंडग्रामको वासुकुंड कहते हैं और वह प्राचीन वैशालीका ही एक भाग था। वैशाली के तीन भाग थे-एक खास वैशाली ( बसाइ), एक कुंडपुर (वासुकुंड) और एक वानियगाम ( बनिया)। उनमें
१-० ना० इं० पृ० ८४ का टि० ४ । २-प्रो. रा. ऐ० सो० बं० १८६८ में डा० हार्नले का भाषण पृ. ३० ।
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