Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१६१ शतीमें रखते हैं तो हमें जनकको अवश्यही ईस्वी पूर्व १२ वीं शतीमें रखना होगा । और यदि आश्वलायन और गौतम बुद्धके . साथ गुणाख्य सांख्यायनकी एककालिकताको स्वीकार किया जाये तो हमें परीक्षितको ईस्वी पूर्व नौवीं शतीमें तथा जनकको ईस्वी पूर्व सातवीं शतीमें रखना होगा।' __यह पहले लिखा है कि विदेहके राज्यासनको बदलनेमें काशीका प्रमुख हाथ था और 'परमत्थ जोतिका' के अनुसार जनक राजवंशके पश्चात् विदेहमें लिच्छवियोंका राज्य हुआ, जो काशीकी एक रानीकी सन्तान थे।
लिक्छवि राज्यकी स्थापनाका समय अज्ञात है । किन्तु इतना सुनिश्चित है कि ईस्वी पूर्वछठी शतीमें भगवान महावीर और गौतम बुद्धके समयमें विदेहमें लिच्छवि गणतंत्र सुदृढ़ रूपसे स्थापित हो चुका था। बुद्धने स्वयं लिच्छवियों के सम्बन्धमें कहा था'जिन्होंने तावत्तिंस देवता न देखे हों वे लिच्छवियोंको देख लें। लिच्छवियोंका संघ तावतिंश देवताओंका संघ है.....।
अतः ईस्वीपूर्व छठी शतीमें विदेहका लिच्छवि गणतंत्र एक बहुत ही शक्तिशाली राज्य था और काशी और कोशल उसके प्रभुत्वको मानते थे। उस गणतंत्रका प्रमुख चेटक था जिसकी सबसे बड़ी पुत्री त्रिशला भगवान महावीरकी जननी थी। तथा सबसे छोटी पुत्री चेलना मगधराज बिम्बसार श्रेणिककी पटरानी तथा अजात शत्रु ( कुणिक ) की जननी थी ।
अजात शत्रुने ही वैशालीके प्रमुख अपने नाना चेटक पर आक्रमण करके उसे अपने राज्यमें मिला लिया था। (पो हि०ए० इं., पृ०१७१ ) और इस तरह सम्भवतया लिच्छवियोंका गणतंत्र समाप्त हो गया।
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