Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१६७ आजके विज्ञान युगके पुरातत्त्वज्ञ' और इतिहासज्ञ पार्श्वनाथके जीवनकी उक्त घटनाको एक पौराणिक रूपकके रूपमें ही ग्रहण करते हैं। अतः उक्त घटनासे वे यह निष्कर्ष निकालते हैं कि पार्श्वनाथके वंशका नागजातिके साथ सौहार्द पूर्ण सम्बन्ध था। पार्श्वनाथने नागोंको विपत्तिसे बचाया इसलिये नागोंने भी समय पर उनकी रक्षा की। ___ महाभारतके आदि पर्वमें जो नागयज्ञकी कथा है उससे सूचित होता है कि वैदिक आर्य नागोंके बैरी थे। नाग जाति असुरोंकी ही एक शाखा थी। और वह असुर जातिकी रीढ़की हड्डीके तुल्य थी। उसके पतनके साथ ही असुरोंका भी पतन हो गया । नागपुर आदि नगर आज भी उसकी स्मृति दिलाते हैं। महाभारतके आदि पर्वमें ही यह भी उल्लेख मिलता है कि नागोंका राजा तक्षक नग्न श्रमण हो गया था।
जब नाग लोग गंगाकी घाटीमें बसते थे तो एक नाग राजा के साथ वाराणसीकी राजकुमारीका विवाह हुआ था (ग्लि. पो० हि, पृ. ६५) । अतः वाराणसीके राजघरानेके साथ नागोंका कौटुम्बिक सम्बन्ध भी था। और गंगा की घाटीमें ही (अहिक्षेत्र) तप करते हुए पार्श्वनाथकी उपसर्गसे रक्षा नागोंके अधिपतिने की थी।
समकालीन धार्मिक स्थिति पहले लिख आये हैं कि शतपथ ब्राह्मणके कालतक काशी, कोशल और विदेह ब्राह्मण संस्कृतिके प्रभावमें आ चुके थे ।
१-नागोंने जैन तीर्थङ्करकी संकटसे रक्षाकी और नाग तीर्थङ्करके मित्र थे, ऐसा जैन कथाश्रोंसे मालूम होता हो'-हि° ध० स०, पृ० १३५।
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