Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
२०१
प्राचीन स्थितिका अन्वेषण वाल्मीकि रामायणमें भी श्रमणोंका निर्देश है। जैन साहित्यमें पाँच प्रकारके श्रमण बतलाये हैं-निग्रन्थ, शाक्य, तापस, गौरुक और आजीवक। जैन साधुओंको निग्रन्थ श्रमण कहते हैं। महावीरका निर्देश बौद्ध त्रिपिटिकोंमें निगंठ नाटपुत्त ( निर्ग्रन्थ ज्ञानपुत्र ) रूपसे मिलता है। त्रिपिटकोमें निग्रन्थका उल्लेख बहुधा आया है। उस परसे डा० याकोवीने यह प्रमाणित किया था कि बुद्धसे पहले निग्रन्थ सम्प्रदाय वर्तमान था। अंगुत्तर निकायमें वप्प नामक शाक्यको निग्रन्थका श्रावक वतलाया है। इस निकायकी अट्ठकथामें लिखा है कि वह वप्प बुद्धका चाचा होता था। इसका मतलब यह हुआ कि गौतम बुद्धके जन्मसे पहले अथवा उनकी बाल्यावस्थामें निग्रन्थका धर्म शाक्य देशमें फैला हुआ था । महाबीर स्वामी तो बुद्धके समकालीन थे। अतः उन्होंने तो उस समय तक निग्रन्थ धर्मका प्रचार नहीं किया था। अतः उनसे पूर्व भी निग्रन्थ सम्प्रदाय बर्तमान था ऐसा मानना ही उचित है। आगे इस सम्बन्धमें विस्तारसे प्रकाश डाला जायेगा। ___ महाबीरके पूर्ववर्ती इस निग्रन्थ सम्प्रदायके नेता भगवान पाव नाथ थे। आधुनिक इतिहासज्ञोंके अनुसार वही निग्रन्थ सम्प्रदायके प्रवर्तक थे। पार्श्वनाथके निग्रन्थ सम्प्रदायका क्या रूप था और उन्होंने किस धर्मका उपदेश दिया था, इन बातोंकी पूरी जानकारी कर सकना शक्य नहीं है क्योंकि उनके समयका कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है। फिर भी जैन और बौद्ध उल्लेखोंसे इतना अवश्य प्रकट होता है कि पार्श्वनाथने 'चतुर्याम' धर्मका उपदेश दिया था। चतुर्याम इस प्रकार थे-सर्व प्रकारके प्राणघातका त्याग, सब प्रकारके असत्य वचनका त्याग, सर्व प्रकारके अदत्तादान ( बिना दी हुई वस्तुका ग्रहण ) का त्याग
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org