Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका शिष्यके शिष्य' किया है। भगवती (१५) की टीकामें पाात्यीयका अर्थ करते हुए चातुर्यामिक साधु भी किया है।
आचा०१ सू० ( २~१५-१५ ) में भगवान महाबीरके पिता सिद्धार्थको पार्थापत्यीय श्रमणोपासक और माता त्रिशलाको पार्थापत्यीय श्रमणोपासिका लिखा है। ___ इन पापित्यीयोंके सम्बन्धमें आगे और भी विशेष प्रकाश डाला जायेगा। यहाँ तो केवल यही बतलाने के लिये उनका उल्लेख मात्र किया गया है कि पार्श्वनाथ वास्तवमें एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे।
भगवान महावीर भगवान पार्श्वनाथकी ऐतिहासिकताके आधारोंपर प्रकाश डालनेके पश्चात् हम भगवान महावीरकी ओर आते हैं।
निगंठ नाटपुत्त और वर्धमान महावीरका ऐक्य
सबसे प्रथम इस शंकाका निवारण करना आवश्यक है कि बौद्ध पिटकोंमें निर्दिष्ठ निगंठ नाटपुत्त हो जैनोंके अन्तिम तीर्थङ्कर महाबीर हैं इसमें क्या प्रम ण है ?
निगंठ नाटपुत्त निर्ग्रन्थोंके बड़े भारी संघके अधिपति थे यह बौद्ध पिटकोंके उल्लेखोंसे स्पष्ट है। अतः निर्ग्रन्थ साधु होनेके कारण उन्हें निगंठ (निग्रन्थ ) कहा गया है और निग्रन्थोंके आचार विचारके विषयमें जो कुछ बौद्ध साहित्यमें कहा गया है वह भी बहुत कुछ अंशोंमें जैन साधु के आचारसे भिन्न नहीं है। अतः आज जो जैन सम्प्रदायके
१-महावीरस्स अम्मा पियरो पासावच्चिजा ।
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