Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका कुण्डपुर दक्षिणकी ओर था और क्षत्रिय कुण्डपुर उत्तर की ओर।
सन्निवेशका अर्थ-नगरके बाहरका प्रदेश, पड़ाव, और ग्राम नगर आदि स्थान भी है। ( पा० स० म० में 'सन्निवेश' शब्द )। इससे कुण्डपुर कोई महत्त्वका स्वतंत्र नगर प्रतीत नहीं होता। ___ संस्कृत' निर्वाण भक्तिमें, जिसे पूज्यपादकृत माना जाता है, 'विदेह कुण्डपुरे' लिखकर कुण्डपुरको विदेहमें बतलाया है। उस समय विदेह देशकी राजधानी वैशाली थी, और भगवान महाबीरकी जननी विदेहके लिच्छवि गणतंत्रके प्रमुख राजा चेटककी पुत्री थी। आचा० सू० (२-३-४००) में भगवानकी जननीके तीन नाम दिये हैं-तिसला, विदेह दिन्ना और पियकारिणी। इनमेंसे दिगम्बर परम्परामें दो नाम प्रचलित हैं त्रिसला
और प्रियकारिणी। तीसरा नाम 'विदेहदिन्ना' विदेह देशकी होनेके कारण दिया गया है । अतः स्पष्ट है कि क्षत्रियाणी त्रिशला विदेह देश की थी।
१-कुडपुरपुर वरिस्सर सिद्धत्थक्खत्तियस्स णाहकुले ।
तिसिलाए देवीए देवीसदसेवमाणाए ॥ २३ ।। अच्छित्ता णवमासे अट्ठयदिवसे चइत्त-सियपक्खे । तेरसिए रत्तीए जादुत्तरफग्गुणीए दु ॥ २४ ।।
-जय० ध०, १ भा०, पृ० ७८ । २-"सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे ।
देव्यां प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान् संप्रदयं विभुः ॥ ४॥" 'भरतेस्मिन् विदेहाख्ये विषये भवनाङ्गणे ॥ २५१ ॥ राज्ञः कुण्डपुरेशस्य वसुधारापतत्प्रथुः"॥२५२॥
उत्तरपु०, पर्व ७४ ।
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