Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका णाटपुत्त कहे जाते थे। और उनके अनुयायी निग्रन्थ 'नाथ' पुत्रीय निर्गठ' (बु० च०, पृ०४८१) कहे जाते थे।
१-श्री बेबरने अपनी पुस्तिका 'इन्डियन सेक्ट आफ दी जैनास्' में इस विषयपर प्रकाश डालते हुए लिखा है
"बौद्ध त्रिपिटकोंका सिंहली संस्करण सबसे प्राचीन माना जाता है । ईस्वी पूर्व तीसरी शतीमें उसको अन्तिम रूप दिया गया ऐसा विद्वानोंका मत है। उसमें निगंठोंका एक विरोधी साधु सम्प्रदायके रूपमें बहुतायत से उल्लेख मिलता है। तथा संस्कृतमें लिखे गये उत्तरीय बौद्ध साहित्यमें निर्ग्रन्थोंको बुद्धका प्रतिद्वन्दी बतलाया है ।
उन निगंठों या निन्थोंके प्रमुखका नाम पालीमें नाटपुत्त और संस्कृत में शातिपुत्र दिया है। जिसका अर्थ होता है 'नाट अथवा ज्ञाति का पुत्र ।' वर्धमानने जिस वंशमें जन्म लिया था, उसका नाम ज्ञाति, ज्ञात या नाथ था। अतः बौद्ध ग्रन्थों में पाये जानेवाले नाट या ज्ञाति शब्दके साथ महावीरके वंशके नामकी समानता प्रत्यक्ष है। और चूकि प्राचीन बौद्ध साहित्यमें किसी ब्यक्तिके नामके स्थान में जिस वंशमें उसका जन्म हुआ है उसके पुत्रके रूपमें उसका उल्लेख करनेकी परम्परा प्रचलित थी, जैसे बुद्ध के लिए शाक्य पुत्र और उसके अनुयायी साधुओंके लिये 'शाक्य पुत्रीय श्रमण' शब्दोंका प्रयोग पाया जाता है । अतः यह अनुमान करनेमें कोई कठिनाई नहीं है कि निगंठों या निग्रन्थोंके प्रमुख नाटपुत्त या ज्ञातिपुत्र और ज्ञात वंशके उत्तराधिकारी तथा निर्ग्रन्थ अथवा जैन सम्प्रदायके अन्तिम तीर्थङ्कर वर्धमान एक ही व्यक्ति हैं। यदि हम इस विचारका अनुसरण करते हुए बौद्धोंके बुद्धके विरोधियोंसे सम्बन्ध रखनेवाली विभिन्न चर्चाोंको एकत्र करें तो यह स्पष्ट है कि वर्धमान के साथ निगंठ नाट पुत्तकी एकता सुनिश्चित है । ( इ० से० जै०, पृ. २६) ---------... नाटपुत्त के जीवन और व्यक्तित्वके सम्बन्धमें बौद्धोंकी चर्चा और भी
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