Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
वंश तथा विदेहके लिच्छवि और ज्ञातृवंशियोंके पारस्परिक सम्बंध का समर्थन होता है ( पो० हि० एं० इ० पृ० ६६ ) । ___ पीछे वृहदा० उप० से गार्गी और याज्ञवलक्यके संवादका एक अंश उध्धृत कर आये हैं। उसमें गार्गी ने काशी और विदेहवासीको उग्रपुत्र कहा है-'काश्यो वा वैदेहो वा उग्रपुत्रः'। यहां 'उग्रपुत्र' अवश्य ही अपना विशेष अर्थ रखता है। उक्त उल्लेखोंके प्रकाशमें उग्र पुत्रका अर्थ उग्रवंशी होना संभव प्रतीत होता है । और चूकि काशी और विदेहके अधिवासी दोनोंको उग्रपुत्र कहा है । अतः काशीके उयों और विदेहके लिच्छवियोंकी एकताका भी इससे समर्थन होता है। ___ कलकत्ता विश्व विद्यालयमें डा० दे० रा. भण्डारकरने ईस्वी पूर्व ६५०-३२५ तकके भारतीय इतिहासपर कुछ भाषण दिये थे। उनमें उन्होंने बतलाया था कि बौद्ध जातकोंमें ब्रह्मदत्तके सिवाय वाराणसीके छ राजा और बतलाये हैं-उग्ग सेन, धनंजय, महासीलव, संयम, विस्ससेन और उदय भद्द। संभव है उग्रसेन या उग्रसेनसे ही काशीमें उग्रवंशी राज्यकी स्थापना हुई हो । विष्णु पुराण और वायु पुराणमें ब्रह्मदत्तके उत्तराधिकारी योगसेन, विश्वकसेन, और झल्लाट बतलाये हैं । डा० भण्डारकर ने पुराणोंके विश्वकसेन और जातकोंके विस्ससेनको तथा पुराणोंके उदकसेन और जातकोंके उदयभद्दको एक ठहराया था।
जैन साहित्यमें पार्श्वनाथके पिताका नाम अश्वसेन या अस्स सेण बतलाया है। यह नाम न तो हिन्दू पुराणों में मिलता है और न जातकोंमें मिलता है। किन्तु गत शताब्दीमें रची गई पाश्वनाथ पूजनमें पार्श्वनाथके पिताका नाम विस्ससेन दिया है। यथा-तहां विस्ससेन नरेन्द्र उदार'। हम नहीं कह सकते कि कविके इस
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