Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१८५ किन्तु ऋषभदेवका ऐतिहासिक अस्तित्व भारतके प्राग ऐतिहासिक कालकी गम्भीर कन्दरामें छिपा है । अतः स्वर्गीय याकोबीका अनुसरण करते हुए हमें भी यही कहना पड़ता है कि जैन धर्मके प्राग ऐतिहासिक विकासके सम्बन्धमें कुछ झलक प्राप्त करके ही हमें संतोष करना पड़ता है. क्योंकि भगवान पार्श्वनाथसे पहलेका सब इतिवृत्त गम्भीर कोहरेसे आच्छन्न है।'
३-ऐतिहासिक युगमें
काशी, कोसल और विदेह अब हम ऐतिहासिक युगमें प्रवेश करेंगे। हमारा यह युग ईसा पूर्व नौंवी शताब्दीके मध्यसे आरम्भ होता है। उसी समय काशी के राजा अश्वसेनके घर जैन धर्मके तेईसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथने जन्म लिया था। ___ अंग, मगध, काशी, कोसल और विदेहमें ब्राह्मण सभ्यता का प्रवेश बहुत काल पश्चात् हुआ था। शत० ब्रा० (१-४-१) में लिखा है कि-'सरस्वती नदोसे अग्निने पूरबकी ओर प्रयाण किया। उसके पीछे विदेध माधव और गौतम राहु गण थे। सबको जलाते और मार्गकी नदियोंको सुखाते हुए वह अग्नि सदानीराके तटपर पहुंची। उसे वह नहीं जला सकी। तब माधव विदेघने अग्निसे पूछा-मैं कहां रहूँ'। उसने उत्तर दिया-तेरा निवास इस नदीके पूरब हो। अब तक भी यह नदी कोसलों और विदेहोंकी सीमा है।'
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