Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
१७०
जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका
नेमिनाथकी ऐतिहासिकता
हम पहले लिख आये हैं कि छा० उप० में देवकीपुत्र श्रीकृष्णका निर्देश है, जो घोर आंगिरसके शिष्य थे। आङ्गिरस ऋषिने देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को कुछ नैतिक तत्त्वोंका उपदेश दिया जिनमें अहिंसा भी है । उपनिषदों को ही सब धर्मोंका मूलाधार मानने वालोंका कहना है कि यहींसे जैनोंने अहिंसा तत्वको ग्रहण किया । (अर्ली हि० वैष्ण०, पृ० १२३ ) ।
श्री धर्मानन्द कौशाम्बीने ( भा० सं० श्र०, पृ० ३८ ) - 'घोर आंगिरस के नेमिनाथ होनेकी संभावना व्यक्त की है क्योंकि जैन ग्रन्थकारों के अनुसार श्रीकृष्णके गुरू नेमिनाथ तीर्थङ्कर थे । श्रीकौशाम्बी जीकी उक्त संभावना में कोई तथ्य दृष्टिगोचर नहीं होता क्योंकि घोर आंगिरस और नेमिनाथके एक व्यक्ति होनेका सूक्ष्मसा भी आभास नहीं मिलता । किन्तु छा० उ० के उल्लेखसे इतना व्यक्त होता है कि श्रीकृष्ण को किसीने अहिंसाका उपदेश दिया था। जैनोंके अनुसार वह व्यक्ति नेमिनाथ था जिसने पशुहिंसा के पीछे न केवल विवाह ही नहीं किया, अपि तु संसार कोही छोड़ दिया ।
प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डा० राय चौधरीने अपने 'वैष्णव धर्मके प्राचीन इतिहास में नेमिनाथको श्रीकृष्णका चचेरा भाई लिखा है किन्तु उन्होंने इससे अधिक जैन ग्रन्थोंमें वर्णित नेमिनाथ के जीवन वृत्तान्तका कोई उपयोग नहीं किया । इसका कारण यह हो सकता है कि अपने उक्त प्रन्थमें डा० राय चौधरीने श्रीकृष्ण के ऐतिहासिक व्यक्ति होनेके सम्बन्ध में उपलब्ध प्रमाणोंका संकलन किया है । अतः उनकी दृष्टि विशेषरूपसे उसी ओर रही है ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org