Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१७१ कतिपय विदेशी विद्वानोंने डा० राय चौधरीके मतसे प्रभावित होकर श्रीकृष्ण वासुदेवको ऐतिहासिक व्यक्ति माना है, किन्तु नेमिनाथको ऐतिहासिक ,व्यक्ति माननेकी ओर उनका कोई झुकाव नहीं है। ___ पी० सी० दीवान ने अपने लेखमें ( भां० इं. पत्रिका, जि० २३, पृ० १२२ ) इसके दो कारण बतलाये हैं-प्रथम, जैन ग्रन्थोंके अनुसार नेमिनाथ और पार्श्वनाथके बीचमें ८४००० वर्षका अन्तर है। दूसरे, हिन्दू पुराणोंमें इस बातका निर्देश नहीं है कि वसुदेवके समुद्रविजय नामक बड़े भाई थे और उनके अरिष्टनेमि नामका कोई पुत्र था। प्रथम कारणके सम्बन्धमें श्री दीवानका कहना है कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे वर्तमान ज्ञानके लिये यह सम्भव नहीं है कि जैन ग्रन्थकारोंके द्वारा एक तीर्थङ्करसे दूसरे तीर्थङ्करके बीच में सुदीर्घकालका अन्तराल कहने में उनका क्या अभिप्राय है इसका विश्लेषण कर सकें। किन्तु केवल इसी कारणसे जैन ग्रन्थोंमें वर्णित अरिष्ट. नेमिके जीवन वृत्तान्त को, जो अति प्राचीन प्राकृत ग्रन्थोंके आधार पर लिखा गया है, दृष्टिसे अोझल कर देना युक्तियुक्त नहीं है। __ दूसरे कारणका स्पष्टीकरण सरल है। भागवत सम्प्रदायके ग्रन्थकारोंने अपने परम्परागत ज्ञानका उतना ही उपयोग किया जितना श्रीकृष्णको परमात्मा सिद्ध करनेके लिये आवश्यक था। जैन ग्रन्थों में ऐसे अनेक ऐतिहासिक तथ्य वर्णित है. जैसा कि ऊपर दिखाया है, जो भागवत साहित्यके वर्णनमें नहीं
मिलते ।
इसके सिवा अथर्ववेद के माण्ड्क्य , प्रश्न और मुण्डक उपनिषदोंमें अरिष्टनेमिका नाम आया है।
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