Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १४६ में विष्णुसहस्र नाममें दो स्थानों पर 'शूरः शौरिर्जनेश्वरः' पद आया है । यथा
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'अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरिर्जनेश्वरः ||५०॥ 'कालनेमि नहा वीरः शूरः शौरिर्जनेश्वरः ॥ ८२ ॥ '
इन दोनों में जो अन्तिम चरण है वह ध्यान देने योग्य है । विक्रम सम्वत्की १९ वीं शतीके आरम्भ में जयपुर में पं टोडरमल नामके एक जैन विद्वान हो गये हैं। उन्होंने अपने मोक्षमार्ग प्रकाश नामक ग्रन्थमें नीचेके श्लोकार्द्धको उद्धृत किया है । उसमें 'जिनेश्वरः' पाठ पाया जाता है। दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें श्रीकृष्णको 'शौरि' लिखा है। आगरा जिले में बटेश्वर के पास शौरिपुर नामक स्थान है। जैन ग्रन्थोंके अनुसार प्रारम्भ में यहीं यादवोंकी राजधानी थी । जरासन्धके भयसे यादव लोग यहीं से भागकर द्वारिकापुरीमें जा बसे थे। यहीं पर नेमिनाथका जन्म हुआ था । इसलिये उन्हें शौरि' भी कहा है और वे जिनेश्वर तो थे ही। हिन्दु पुराणों में शौरिपुर के साथ यादवोंका कोई सम्बन्ध मेरे देखने में नहीं आया । अतः महाभा'रत में श्रीकृष्णको 'शौरिः' लिखना विचारणीय है ।
महाभारत के किसी संस्करण से मैंने एक श्लोकका संग्रह किया था, वह श्लोक निम्न प्रकार है
रेवताद्रौ जिनो ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य
नेमियुगादिर्विमलाचले कारणम् ॥
प्रभास पुराण में यह श्लोक मिलता है । इसमें गिरिनार पर्वतपर नेमि जिनका उल्लेख किया है और उन्हें मोक्षमार्गका
कारण बतलाया है।
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