Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण जैसे परमेश्वरके लिये उचित है । इसके सिवाय एक और तथ्यकी उपेक्षा करना असंभव है । उपनिषदके जिस वाक्यमें कृष्णका निर्देश है उसमें अन्य गुणोंके साथ सत्य बोलना भी सम्मिलित है। किन्तु उससे महाभारतके कृष्णके कार्यों और क्रियात्मक उपदेशोंमें बहुत अन्तर प्रतीत होता है।' (ज० रा० ए० सो० १६१५, पृ०५४८-५०)। ___ अन्तमें डा० कीथने लिखा है-'हमें यह मान लेना चाहिए कि इस विषयके निर्णयके लिये हमें जो प्रमाण उपलब्ध हैं वे पर्याप्त नहीं है। उनपर हम उस कृष्णका महल खड़ा नहीं कर सकते जिसने केवल मनुष्यके रूपमें भागवत धर्मकी स्थापना की। महाभारत का कृष्ण परमेश्वर है और उपनिषद का कृष्ण मनुष्य है। और दोनोंकी एक रूपताके आधार स्पष्ट नहीं हैं।'
छा. उ० में घोर आङ्गिरस ऋषिके शिष्यके रूपमें देवकी पुत्र कृष्णका उल्लेख आया है। वहाँ यह नहीं बतलाया कि कृष्णने स्वयं किसी धर्मका उपदेश दिया । उससे तो केवल इतना ही प्रकट होता है कि कृष्ण एक गुरुके सम्पर्कमें आये और उनसे उन्होंने कुछ सिद्धान्तोंकी शिक्षा ली। किन्तु गीतामें जो उपदेश दिया गया है उसे कृष्णका कहा जाता है और चूकि गीता उपनिषदों के बादमें रची गयी है अतः गीताके मूल सिद्धान्त कृष्णके द्वारा उपदिष्ट हुए ऐसा माना जाता है।
सारांश यह है कि महाभारतके कृष्ण मानव हैं या देव, यह निश्चित नहीं है । कुछका मत है कि कृष्ण मनुष्य था पीछे उसे देवताका रूप दिया गया, कुछ का कहना है कि वह प्रारम्भ से ही देवता रहा है। किन्तु इतना निश्चित है कि ईस्वी पूर्व चतुर्थ शती में कृष्णकी मान्यता देवताके रूपमें होती थी, क्योंकि पाणिनिने
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