Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण नेमिनाथकी वन्दनाके लिए गये और उनको नमस्कार करके समवसरणमें बैठ गये । उपदेश श्रवण करनेके पश्चात् बलदेवने भगवानसे प्रश्न किया-नाथ ! यह हमारी नगरी द्वारिकापुरी क्या इसी प्रकार सुरक्षित रहेगी या समुद्रमें डूब जायेगो ? कृष्णके जीवनका अन्त कैसे होगा ? मेरी इससे गहरी ममता है। ___ भगवान बोले-आजसे बारहवें वर्ष में मद्यपानके निमित्तसे द्वीपायन मुनिके क्रोधसे द्वारिकापुरीका विनाश होगा। और वनमें सोते हुए श्री कृष्णका अन्त जरत् राजकुमारके निमित्तसे होगा। ____ भगवानकी इस वाणीको सुनकर जरत्कुमार बहुत दुःखी हुआ और कुटुम्बका परित्याग करके ऐसे देशको चल दिया जहां श्री कृष्णसे उसका समागम ही न हो सकता हो । और श्री कृष्ण ने समस्त द्वारिका पुरीमें मद्यपानपर प्रतिबन्ध लगानेकी घोषणा कर दी तथा समस्त मद्य और मद्यपात्र एक पर्वतकी गुफ़ाके पास स्थित कुण्डमें फिकवा दिये।
बारहवें वर्षको बीता जानकर द्वीपायन मुनि द्वारिका नगरी के बाहर स्थित पर्वतपर आकर ठहरे और तपमें निमग्न होगये । उधर कुछ यादव कुमार वनमें क्रीड़ा करनेके लिये आये । उन्होंने प्याससे पीड़ित होकर कुण्डमें फेंकी हुई पुरानी मदिराका पान कर लिया। मदिराने अपना प्रभाव दिखलाया। वे यादव कुमार मदोन्मत्त होकर नाचने गाने लगे। अचानक उनकी दृष्टि द्वीपायन मुनिपर जा पड़ी। 'यही द्वीपायन हमारी द्वारिकाको नष्ट करंगा । इसे हमें मार डालना चाहिये।' यह सोचकर वे उन्मत्त यादव कुमार उसे पत्थरोंसे मारने लगे। पत्थरोंकी चोटसे आहत होनेपर द्वीपायनका क्रोध झड़क उठा, भ्र कुटियाँ तन गई, वह दांतोसे ओष्ठ काटने लगा।
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