Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण अतः ऋग्वेदका यह हिरण्यगर्भ वास्तवमें कौन है यह अभी तक भी स्पष्ट नहीं हो सका है। मि० वालिस ( wallis ) का कहना है कि हिरण्यगर्भ शब्द लाक्षणिक है, यह विश्वकी महान शक्तिको सूचित करता है जिससे सब उत्पन्न हुए। यह एक विचार है जो उत्तरकालीन ब्रह्माकी कल्पनाके अतिनिकट है (हि० प्री० इं०, पृ. ३५)।
विक्रमकी नौवीं शतीके जैनाचाय जिनसेनने-जिन्होंने ऋषभ देवका विस्तृत चरित 'महापुराण' लिखा है, ऋषभ देवको हिरण्यगर्भ' कहा है। जैन मान्य ताके अनुसार जब ऋषभदेव ग में आये तो आकाशसे स्वर्णकी वर्षा हुई। इसीसे वे 'हिरण्यगर्भ' कहलाये।
योग के जनक हिरण्यगर्भ जैन महापुराण तथा श्रीमद्भागवत् के अनुसार ऋषभ देव बड़े भारी योगी थे। जैन पुराण तो उन्हें ही योग मार्गका श्राद्य प्रवर्तक बतलाते हैं। उन्होंने ही सर्व प्रथम राज्यको त्यागकर बनका मार्ग लिया था। मोहेजोदड़ोसे प्राप्तमूर्ति भी, जिसके ऋषभ देवका पूर्वरूप होने की संभावना की जाती है-योगकी मुद्रा में है। .
सैषा हिरण्यमयी वृष्टिः धनेशेन निपातिता । विभोर्हिरण्यगर्भत्वमिव बोधयितु जगत् ।।पर्व १२,६५॥ "गब्भडिअस्स जस्स उ हिरण्णवुट्ठो मकंचणा पडिया। तेणं हिरण्णगब्भो जयम्मि उवगिजए उसभो"
(पउम० ३, ६८)
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