Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण - १२१ ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजः। सोऽभिषिच्यर्षभः पुत्रं महाप्राव्राज्यमास्थितः ।।
हिमाद्वं दक्षिणं वर्ष तस्य नाम्ना विदुबुधाः । उक्त श्लोक थोड़ेसे शब्द भेदके साथ प्रायः उक्त सभी पुराणों में पाये जाते हैं। प्रायः सभी हिन्दू पुराण इस विषयमें एकमत हैं कि ऋषभ पुत्र भरतके नामसे इस देशका नाम भारतवर्ष पड़ा, न कि दुष्यन्त पुत्र भरतके नामसे । हिन्दू पुराणोंका यह ऐकमत्य निस्सन्देह उल्लेखनीय है। ____ श्रीमद्भागवतमें तो ऋषभावतारका पूरा वर्णन है और उन्हींके उपदेशसे जैनधर्मकी उत्पत्ति भी बतलाई है। डा० आर. जी० भण्डारकर' के मतानुसार '२५० ई० के लगभग पुराणोंका पुनर्निमाण होना आरम्भ हुआ और गुप्तकाल तक यह क्रम जारी रहा। इस कालमें समय-समयपर नये पुराण भी रचे गये ।'
इस तरह उपलब्ध पुराण प्रायः गुप्तकालकी कृतियाँ हैं और उनमें वर्णित प्राग ऐतिहासिक कालीन घटनाओंको तथ्यके रूपमें स्वीकार कर सकना यद्यपि संभव नहीं है, फिर भी भारतके अनेक प्राचीन वंशों और अनुश्रुतियोंका संरक्षण उन्हींके कारण हो सका है और भारतीय इतिहासकी त्रुटित शृङ्खलाओंको जोड़ने में भी पुराणोंका साहाय्य कम नहीं रहा है । इसलिये पुराणोंमें चर्चित विषयोंको कोरी गप्प कहकर नहीं उड़ाया जा सकता। उनमें भी
आंशिक तथ्योंकी संभावना है। अतः अधिक नहीं तो कम-सेकम इतना तो स्पष्ट ही है कि ऋषभदेव, उनके माता पिता तथा
1 A peep into early Indian history, ( भण्डारकर लेख संग्रह जिल्द १, पृ० ५६ )
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