Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१३१ विदर्भ. कोकर, द्रविड़ आदि नामक पुत्र भी ऋषभदेवके थे। ये सब भारत वर्षके विविध प्रदेशोंके भी नाम रहे हैं। इनमें द्रविण नाम उल्लेखनीय है । जो बतलाता है कि ऋषभदेवजी द्रविड़ोंके भी पूर्वज थे। सिन्धु सभ्यता द्रविड़ सभ्यता थी और वह योगकी प्रक्रियासे परिचित थी जिसकी साधना ऋषभदेवने की थी। ___ श्री चि०वि० वैद्यने भागवतके रचयिताको द्रविड़ देशका अधिवासी बतलाया है । ( ह०३०लि. (विन्टर०) भा० १, पृ०५५६ का टिप्पण नं०३)। और द्रविड़ देश में रामानुजाचार्यके समय तक जैन धर्मका बड़ा प्राबल्य था। संभव है इसीसे भागवत्कारने ऋषभ देवको द्रविड़ देशमें ले जाकर वहींपर जैन धर्मकी उत्पत्ति होनेका निर्देश किया हो । किन्तु उनके इस निर्देशसे भी इतना स्पष्ट है कि ऋषभ देवके जैन धर्मका आद्य प्रवर्तक होनेकी मान्यतामें सर्वत्र एक रूपता थी और ऋषभदेव एक योगीके रूपमें ही माने जाते थे। तथा जनसाधारणकी उनके प्रति गहरी आस्था थी । यदि ऐसा न होता तो ऋषभदेवको विष्णुके अवतारोंमें इतना आदरणीय स्थान प्राप्त न हुआ होता।
विष्णु और अवतारवाद
यहाँ विष्णु और उसके अवतारवादके संबन्धमें प्रकाश डालना उचित होगा।
यह स्पष्ट है कि प्राचीन वैदिक कालमें भी विष्णु एक महान् देवता था। किन्तु कोई भी उसे एक मात्र देवता अथवा सर्वोच्च देवता नहीं मानता था । ऋग्वेदसे प्रगट है कि इन्द्रके
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