Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका जिस योगबल (सिद्धियों ) को ऋषभजीने असार समझकर नहीं गृहण किया और-और योगी लोग उसीके पानेकी अनेक चेष्टाएँ करते हैं । हे राजन् ! ऋषभदेव जी लोक, वेद, देवता, ब्राह्मण, गौ आदि सब पूजनीयोंके पूजनीय परम गुरु हैं॥ (स्क० ५, अ०६) ___ ऋषभदेव जीमें इतनी श्रद्धा-भक्ति प्रकट करनेका एक ही कारण हो सकता है कि उन्हें विष्णुके अवतारोंमें माना गया है। किन्तु विष्णुके दस अवतारोंमें ऋषभदेवकी गणना नहीं है जब कि बुद्ध की गणना है। हाँ, चौबीस अवतारोंमें ऋषभदेवको अवश्य स्थान दिया है।
विष्णुके अवतार पुराणोंके अवलोकनसे विष्णुके अवतारों में भी एकरूपता दृष्टिगोचर नहीं होती । विभिन्न ग्रन्थकाराने विभिन्न प्रकारसे उनका उल्लेख किया है। महाभारत शान्तिपर्वके नारायणीय भागमें छै अवतार गिनाये हैं-वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम और वासुदेव कृष्ण। कुछ अन्तर देकर इसीके बाद अवतारोंकी संख्या दस बतलाई है, उसमें हंस, कूर्म और मत्स्यको उक्त छै अवतारोंके आदिमें रखा है और अन्तमें कल्किको रखा है । ऐसा प्रतीत होता है कि जब अवतारोंकी संख्या दस निश्चित हो गई तो अन्तिम अंश उसमें जोड़ दिया गया, ऐसा आर० भण्डारकरका अभिप्राय है (वै. शै०, पृ० ५६ )
हरिवंशमें उक्त छै अवतारोंका ही निर्देश है। वायु पुराणमें दो स्थलोंमें अवतारोंका निर्देश किया है। अ०६७ में उनकी संख्या
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