Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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उरुनेत्र
प्राचीन चरित्रकोश
उर्वशी
. उरुनेत्र--जालंधर की सेना का एक राक्षस । इस पर | गया है तथा दसवें मंडल में उर्वशी-पुरूरवा संवाद है। गणपति ने खड्गप्रहार किया, जिससे उसके मुख में से | शर्त के अनुसार, राजा नग्न अवस्था में दिखाई देने के नौ सिर तथा अठारह भुजाओं वाला दैत्य निकला | कारण उर्वशी उसे छोडकर जाती है। वह छोड़कर न (पन. पा. १७.)।
जावे इसलिये राजा पागल की तरह भटकते भटकते एक उरुवल्क--वसुदेव तथा इला का पुत्र ।
सरोवर के पास आया। वहां वह सखियों के साथ क्रीडा - उरुश्रवस्-(सो. नरिष्यंत.) सत्यश्रवस् का पुत्र ।। कर रही थी। उस स्थान पर राजा तथा उर्वशी का संवाद इसका पुत्र देवदत्त ।
हुआ जो ऋग्वेद में वर्णित है (श. ब्रा. ११,५.१. मा. उर्मि–सोम का पुत्र ।
९.१४)। उर्वशी गर्भवती थी इसलिये उसने राजा के उर्मिला-एक गंधर्वी, सोमदा की माता । पास आना अस्वीकार कर दिया। संक्षेप में संवाद का यही
२. सीरध्वज जनक की कन्या। दशरथपुत्र लक्ष्मण सार है। अपने लिये प्राणत्याग करने को प्रवृत्त हुए राजा की स्त्री।
को प्राणत्याग से निवृत्त होने को बता कर उर्वशी ने नारी उर्व--एक ऋषि । च्यवन ने अपने कुल का वृत्तान्त | स्वभाव की अच्छी कल्पना राजा को दी। उर्वशी देवों में कहा है। उस में ऊर्व नामक एक तेजस्वी कुलवर्धक का | से भी है ऐसा वहां वर्णित है। इसीलिये उसने निर्देश है । उससे अग्नि उत्पन्न हुआ। वह समुद्र में वडवा- राजा को सुझाया है कि मृत्यु के बाद स्वर्ग में आने पर उसे रूप से है । उसका पुत्र ऋचीक । वह बडा योद्धा था।। उसका सहवास प्राप्त होगा। उसने जमदग्नि को अपना पुत्र माना । ऋचीक की पत्नी गाधि की कन्या थी। गाधि का पुत्र विश्वामित्र । ऋचीक
उर्वशी को देखकर वासतीवरसत्र में मित्रावरुणों का रेत को गाधिकन्या सत्यवती से क्षत्रियान्त परशुराम पैदा |
| स्खलित हुआ तथा उनसे कालोपरांत अगस्त्य तथा वसिष्ठ हुआ। इस प्रकार भृगु तथा कुशिककुल का संबंध है
उल्पन्न हुए (कात्यायनकृत सर्षानुक्रमणी. १.१६६; बृहद्दे. (म. अनु. ५६)। .
२.३७,४४.१५६; ३.५६)। उर्वशी पुरूरवस का आख्यान बाहु का पुत्र सगर । वह अयोध्या का नृप था। है
बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध है । अप्सराओं का निर्देश . हय तालजंघ ने उसे राजपद से च्युत किया। तब ऊर्व
ऋग्वेद में है। . भार्गव ने उसका रक्षण किया (वायु.८८.१२३)। . इससे और्ववंश पैदा हुआ (वायु. ८८.१५७; मत्स्य.
नर नारायण ऋषि बदरिकाश्रम में तप कर रहे थे। वे
इंद्रपद न ले लें, इस भय से इंद्र ने वसंत, काम एवं मेनका, १२.४०)। इसने अपनी जंघा से और्व अग्नि नामक
रंभा, तिलोत्तमा, घृताची आदि सोलह हजार पचास पुत्र उत्पन्न किया । यहाँ ऊर्व को शुक्र कहा है । देव, मुनि
अप्सराओं को उन्हें तप से परावृत करने के लिये भेजा तथा दानव इसके अनुयायी थे (पन. सृष्टि. ३८.७४१०७) पद्म में उर्व शब्द ऊर्व है।
(दे. भा. ४.६)। विष्णुपुराण में ऐसा वर्णन है कि पुराण
पुरुष विष्णु गंधमादन पर तप कर रहे थे तब यह मदन२. (सो. पूरु. भविष्य.) मत्स्यमतानुसार पुरंजय का
सेना भेजी गयी थी (पन. सृ. २२)। गायनादि प्रकारों पुत्र।
से उन्हें मोहित करने के कई प्रयत्न किये गये; परंतु सब उर्वरा-एक अप्सरा (म. अनु. ५०.४७ कुं.)।
निष्फल हुआ देख वे सब खिन्न हो गये । नरनारायणों ने उन उर्वरीयान-सावर्णिमनु का पुत्र ।
सबका अत्यंत मधुर शब्दों से आदरातिथ्य कर के, पूछा कि उर्वरीवत्--और्व का नामांतर ।
आपका यहा आगमन किस हेनुसे हुआ है ? | जिससे कामादि उर्वशी-एक अप्सरा की तरह ऋग्वेद के काल से लजित हो अधोमुख कर स्तब्ध खडे हो गये। इतने में प्रसिद्ध है । ऋग्वेद में उर्वशी के एक संवादात्मक सूक्त में उन्होंने देखा कि नारायण की जंघा से सोलह हजार बहुत सी ऋचायें हैं (ऋ. १०.९५) उर्वशी शब्द ऋग्वेद | इक्कावन अप्सरायें प्रगट हुई जिनमें उर्वशी अत्यंत सुंदर में कई बार आया है (ऋ ४.२. १८; ५.४१. १९; ७. थी। यह उरु अर्थात् जंघा से उत्पन्न हुई इसलिये इसका ३३.११, १०.१५.१०, १७)। तथापि अंतिम तीन | नाम उर्वशी हुआ। नरनारायणों ने इंद्र को भेंट करने के स्थानों पर तो निश्चित रूप से व्यक्तिवाचक शब्द है। | लिये नयनाभिरामा उर्वशी कामादि के सुपुर्द की । तदुपरांत सातवें मंडल में इससे वसिष्ठ उत्पन्न हुआ ऐसा बताया | सब अप्सराओं ने नरनारायणों की सेवा में रहने के लिये प्रा. च. १२]
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