Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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उपरिचर वसु
चरण पकड़ लिये । तब उन्होंने कहा कि, तुम पृथ्वी पर कृतयज का पुत्र हो कर भगवदाराधना कर वैकुंठ पद प्राप्त करोगे तथा अच्छोदा, अद्रिका के उदर से काली नाम से जन्म लेगी । यही सत्यवती है ( स्कंद २.९.४–७; मस्य. ५० ) ।
उपरिबभ्रव--शान्त्युदक करते समय कौनसा मंत्र प्रयुक्त करना चाहिये, इस विषय में इसका मत भिन्न है ( कौ. सु. ९.१० ) । उसी तरह, प्रेत किस तरह रखना चाहिये, इस विषय पर इसका मत पितृविधि में लिखा हुआ है ( कौ.सू. ८०.५४) ।
उपरिमंडल -- भृगुकुल का एक गोत्रकार । परिमंडल ऐसा पाठ है।
प्राचीन चरित्रकोश
उपलप - वसिष्ठ गोत्र का ऋषिगण ।
उपलंभ -- (सो. वृष्णि.) अक्रूर का रत्ना उर्फ शैब्या से उत्पन्न पुत्र ( मत्स्य ४५.२९ ) । उपलोम -- वसिष्ठकुलोत्पन्न ऋषि ।
उपवर्ष - पाटलीपुत्र के शंकरस्वामी का पुत्र तथा पाणिनि का गुरुबंधु । इसने पूर्वोत्तरमीमांसासूत्र पर वृत्ति रची है। शबर और शंकराचार्य ने इसका बारंबार निर्देश किया है (कथासरित्सागर) | यह बौधायन का दूसरा नाम रहा होगा। परंतु श्रीभाष्यकार इन दोनों को एक नहीं मानते क्यों कि ऐकात्म्याधिकरण में (ब्र. सु. ३.३.५३ ) शंकराचार्य ने उपवर्ष का विवरण दिया है। श्रीभाष्यकार उसी अधिकरण को प्रत्यगात्म पर लगाते हैं । उपवर्ष का शबर स्वामी ने भी उल्लेख किया है। ऐसी एक आख्यायिका है कि काश्मीर में रामानुजाचार्य को केवल एक बार बौधायनवृत्ति देखने मिली । यह संधि पा कर उन्होंने उसे पुरा पढ लिया तथा इससे श्रीभाष्य लिखा ।
उपवाह्यका— संजय की पुत्री और भजमान की स्त्री ( ह. वं. १.३७.३ ) ।
उपवेशि -- कुश्रि का शिष्य (बृ. उ. ६.५.३.) । उपलोक -- ब्रह्मसावर्णि मनु का पिता । उपसुंद --सुंदोपसुंद देखिये ।
उपस्तुत वार्ष्टिहव्य--सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.११५ ) । कण्व मेध्यातिथि के साथ इसका निर्देश है (ऋ. १.३६. १०; १७ ) । इसका बहुवचनी स्तोता मानकर उल्लेख हैं (ऋ. ८. १०३. ८ ) । उपस्तुत का ऋग्वेद में कई बार उल्लेख है ।
उरुधिष्ण्य
(
उपाध्याय -- कश्यप को आर्यावती से उत्पन्न पुत्र भवि. प्रति. ४.२१ ) ।
उपहूत - स्वर्ग में रहने वाले पितर | इनकी कन्या यशोदा । यशोदा का पुत्र खट्वांग ( ब्रह्माण्ड ३. १०.९० ) ।
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उपान -- साध्यदेवों में से एक ।
उपावि जानश्रुतेय -- उपसदकर्म के विषय में प्रमाण की तरह मान्य एक प्राचीन आचार्य का यह नाम है ( ए. बा. १.२५ ) ।
उपावृद्धि - - वसिष्ठकुलोत्पन्न एक ऋषि । उपासंगधर -- (सो. वृष्णि. ) मत्स्यमतानुसार वसुदेव का देवरक्षिता से उत्पन्न पुत्र ।
उपोदिति गौपालेय-- सामद्रष्टा (पं. बा. १२. १३. ११) ।
उभक्षय -- (सो. पूरु. ) वायुमतानुसार भीम का पुत्र । उभयजात -- भृगुकुलोत्पन्न ब्रह्मर्षि ।
रमा-- हिमालय की मेना से उत्पन्न पुत्री। इसका पति रुद्र (पद्म. सृ. ९ ) । उपनिषद् में विद्या का उमा हैमवती ऐसा निर्देश है (जै. उ. बा. ४. २०१२ ) ।
उम्लोचा - एक अप्सरा ( म. आ. ११४.५४) । उर वाणिवृद्ध-- एक आचार्य (सां. ब्रा. ७. ४) । उरुक्रम – आदित्यों में से एक । यह ऊर्ज (कार्तिक) माह में प्रकाशित होता है ( भा. १२.११ ) । परंतु भविष्यपुराण में ऐसा दिया है कि यह चैत (चैत्र) में प्रकाशित होता है और इसकी १२०० किरणें हैं ( भवि. ब्राह्म. १७८; विवस्वान् देखिये ) । विष्णु तथा त्रिविक्रम इसे नामांतर हैं। कीर्ति इसकी भायां थी, जिससे बृहच्छ्लोक नामक पुत्र हुआ (मा. ६.१८.८ ) ।
उरुक्रिय - (स. इ. भविष्य. ) बृहद्बल का पौत्र व बृहद्रण का पुत्र जिसे अभिमन्यु ने मारा । उरुक्षय इसका नामांतर है । वत्सवृद्ध या वत्सद्रोह इसका पुत्र था ।
उरुक्षय -- (सो. पुरु. ) विष्णुमतानुसार महावीर्य का पुत्र । यह क्षत्रिय से ब्राह्मण हुआ था। इसे विशाला से उत्पन्न त्र्य्यारुण, पुष्करिन् तथा कपि भी ब्राह्मण थे ।
२. अंगिरा गोत्र का प्रवर |
उरुक्षय आमहीयव--सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.११८ ) । उरुक्षय का बहुवचन में निर्देश इस सूक्त में है (ऋ. १०. ११८.८-९)
उरुक्षेप - (सू. इ.) भविष्यमतानुसार बृहदैशान का पुत्र ।
उरुचत्रि आत्रेय - - सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.६९-७० ) । उरुधिष्ण्य-- धर्मसावर्णि मन्वंतर के सप्तर्षियों में से
एक ।