Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
उपमन्यु वासिष्ठ
प्राचीन चरित्रकोश
उपरिचर वसु
था, तब इसे दुग्धप्राशन करने मिला था (लिङ्ग. १.१०७; नंदिकेश्वरकाशिका से पता चलता है। शेखर के रचयिता शिव. वाय. १.३४.३५)। घर आ कर उपमन्यु माता से | नागेशभट्ट ने नंदिकेश्वर का शिका को प्रमाण माना है। दूध मांगने लगा। मां ने आटा पानी में घोल कर दिया इस बात से पता चल जायेगा कि उपमन्यु, पाणिनि तथा जिस कारण उसे बहुत खराब लगा। मां ने स्नेहपूर्वक पतंजलि के पश्चात् का रहा होगा। व्याघ्रपाद (उपमन्यु उपमन्यु पर हाथ फेरते हुए कहा कि, पूर्वजन्म में शंकर की का पिता), नंदिकेश्वर तथा पतंजलि समकालीन थे, आराधना न करने के कारण, दूध मिलने इतना देव अपने ऐसा प्रतीत होता है। परंतु काल की दृष्टि से सारे उपमन्यु अनुकूल नहीं है । शंकर कैसा है, उसका ध्यान किस तरह एक है यह कहना असंभव लगता है। इसके द्वारा करना चाहिये, इत्यादि जानकारी उसने माता से पूछी। लिखे ग्रन्थ, १. अर्धनारीश्वराष्टक, २. तत्त्वविमर्षिणी, माता को प्रणाम कर वह तपस्या करने चला गया ।। ३. शिवाष्टक, ४. शिवस्तोत्र (बृहत्स्तोत्र रत्नाकर में छपा वहां दुस्तर तपस्या कर शंकर को उसने प्रसन्न किया। प्रथम है), ५. उपमन्युनिरुक्त (C.C.) हैं । इसने एक स्मृति शंकर ने इंद्र के स्वरूप में आ कर कहा कि, मेरी आराधना की भी रचना की थी, ऐसा स्थान स्थान पर आये वचनों करो; परंतु उसे शंकर के अभाव में देहत्याग की तयारी | से पता चलता है। करते देख शंकर ने प्रगट हो उसे अनेक वर दिये। क्षीरसागर दिया तथा गणों का अधिपति नियुक्त किया।
४. कृष्णद्वैपायन व्यास का पुत्र, शुकाचार्य का बंधु । उसने शंकर पर अनेक स्तोत्र रचे। उसने आठ ईटों का
। ५. इंद्रप्रमतिपुत्र वसु का पुत्र (ब्रह्माण्ड. ३.९:१०.)। मंदिर बना कर मिट्टी के शिवलिंग की आराधना की, तथा यह ऋग्वेदी श्रुतर्षि मध्यमाध्वर्यु भी था। पिशाचों द्वारा लाये गये विघ्नों पर भी उसने तप को भंग
उपमश्रवस्--मित्रातिथि का पुत्र (ऋ.१०.३३.७)। नहीं होने दिया (शिव. वाय. १.३४)। यह शैव था। बालिका के बाद
इसका मन इसने कृष्ण को शिवसहस्रनाम बताया (म. अनु. १७)।
करने आया (ऋ. १०.३३)। इसी सूक्त में कुरुश्रवण तथा पुत्रप्राप्ति के लिये तप करने जब कृष्ण आया, तब
त्रासदस्यव की दानस्तुति है। कुरुश्रवण त्रासदस्य॑व तथा उसे शैवी दीक्षा दी। हिमवान् पर्वत के आश्रम में अंत
मित्रातिथिपुत्र उपमश्रवस् का कोई संबंध रहा होगा ऐसा में यह अत्यंत जीर्णवस्त्र ओढ कर रहता था। इसने जटा
नहीं लगता (सायणभाप्य व वृहद्दे.)। भी धारण की थी। यह कुतयुग में हुआ था (म. अनु.
उपयाज-कश्यपगोत्रोत्पन्न ऋषि (द्रुपद देखिये)। १४-१७; शिव. उमा. १)। शकर के बताये अत्यंत विस्तृत
उपयु-पराशरकुल का गोत्रकार । शैवसिद्धांत को इसने ऊरु, दधीच तथा अगस्त्य इनके
उपरिचर वसु--(सो. ऋक्ष.) यह कुरुवंश के साथ संक्षेप में कर समाज में प्रसिद्ध किया (शिव. वाय.
सुधन्वा की शाखा के कृतयज्ञ या कृति का पुत्र है (सुध३२)।
न्वन् देखिये)। इसने यादवों से चेदि देश जीत लिया २. नंदिकेश्वरकृत काशिका ग्रंथ पर व्याघ्रपद के पुत्र तथा चैद्योपरिचर अर्थात् चैद्यों का जेता यह नाम स्वयं उपमन्यु की टीका है। इस टीकाकार ने अपनी लिया (वायु. ९४; ब्रह्माण्ड. ३.६.८; ह. वं. १. ३०; अपनी टीका में इस काशिका के बारे में यह ब्रह्म. १२; म. आ. ५७)। उपरिचर इसकी पदवी है विवरण दिया है कि, शिव ने अपने डमरू के मिष | तथा वसु इसका नाम है। उपरिचर शब्द की भांति ही (बहाने) सनक, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार इत्यादि | अंतरिक्षग, आकाशस्थ, ऊर्ध्वचारी आदि शब्द इसके ऋषियों के तथा नंदिकेश्वर, पतंजलि, व्याघ्रपाद आदि | लिये प्रयुक्त हैं। यह सदा विमान में बैठ कर आकाश भक्तों के लिये चौदह मूत्रों के द्वारा ज्ञान प्रगट किया। में विचरण करता था, ऐसा इसके बारे में वर्णित है। परंतु उन में से केवल एक नंदिकेश्वर को इन सूत्रों का | इसके गले में इंद्रमाला के कारण इसे इंद्रमाली कहते थे । तत्त्वार्थ सनझा, तथा उसने इन छब्बीस श्लोकों की | इसकी स्त्री गिरिका । इसने तप कर इंद्र को संतुष्ट काशिका रची ( शिवदत्त-महाभाष्य पृष्ठ ९२ देखिये)। | किया। इंद्र ने इसे स्फटिकमय दिव्य विमान दिया तथा व्याकरण संबंधी माहेश्वर के चौदह वर्णसूत्र प्रसिद्ध | जिसके कमल कभी नहीं मुरझायेंगे ऐसी इंद्रमाला नामक है, जो महेश्वर ने डमरू बजा कर पाणिनि को दिये | वैजयंती अर्पण की और कहा कि, तुम्हे पृथ्वी पर धर्माऐसी प्रसिद्धि है। इन सूत्रों का कुछ गूढार्थ है, ऐसा | चरण करने के बाद पुण्यलोक प्राप्त होंगे; इस लिये तू
८६