Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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उद्दालक आरुणि
था (बृ. उ. ६. ५. ३ ) । इसका पुत्र श्वेतकेतु (बृ. उ. ६.२.१९ छां. उ. ६.१.१ ) । पतंचल काप्य इसका गुरु था । इसने याज्ञवल्क्य को अध्यात्म संबंधी कुछ प्रश्न पूछे थे। वाशवल्क्य ने जिनके उत्तर विस्तृत रूप से दे उसे चुप कर दिया (बृ. उ. ३.७) । एक याश्वस्य इसका शिष्य भी था (बृ. उ. ६.५.३ ) ।
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इसकी ब्रह्मविद्या की परंपरा ब्रह्मा से है। इसे इसके पिता से ही ब्रह्मविद्या मिली थी ( छ. उ. ३.११. ४) । बडे बडे ज्ञानी लोग भी अध्यात्मविद्या संपादनार्थ इसके पास आते थे । इंद्रद्युम्न, सत्ययज्ञ, जन तथा बुडिल इसके पास अध्यात्मविद्या सीखने के लिये आये थे (छां. उ. ५.११.१-२ ) । इसके कुल के मनुष्य विद्वान् थे ऐसी उस समय ख्याति थी । इसने श्वेतकेतु को सिखाया हुआ तत्त्वज्ञान प्रसिद्ध है ( छ. उ. ६.१ श्वेतकेतु देखिये) ।
प्राचीन चरित्रकोश
इसका उल्लेख अन्यत्र भी आता है । राज्याभिषेक के समय कहे जाने वाले मंत्रों के संबंध में इसका मत सर्वमान्य है ( ऐ. बा. ८.७ ) ।
उद्दालकायन - जाबालायन का शिष्य (बृ. उ. ४. ६. २ ) ।
उद्दालक - अत्रिकुल का एक गोत्रकार। उदिए चैवस्वत मनु का पुत्र ।
उद्धत - एक राक्षस का नाम । यह शुकरूप में आया था। तब विनायक ने इसका वध किया।
उपकोसल कामलायन
अंतिम जन्म है । तुम ने मेरी कृपा संपादन की, इसलिये मैं तुम्हें सर्वश्रेष्ठ आत्मज्ञान बताता हूँ। ऐसा कह कर उद्धव को कृष्ण ने आत्मानात्मविवेक बताया । यही उद्धवगीता तथा अवधूतगीता नाम से प्रसिद्ध है (मा. ११. ७ २९ ) । तब उद्धव ने आनंद मिश्रित दुःख से उसकी प्रदक्षिणा कर बदरिकाश्रम के लिये गमन किया तथा वहां नरनारायण आश्रम में रह कर लोकहितार्थ बहुत तप किया। फिर विशाला को (बदरिकाश्रम) जा कर मोक्ष प्राप्त किया (भा. ११. २९ ४७) । श्रीकृष्ण उद्धव को अपने से अणुमात्र भी कम नहीं समझते ये तथा आत्मज्ञानोपदेश करने के लिये ही उद्धव को उन्होंने अपने पीछे रस छोड़ा था ऐसा शुकाचार्य ने बताया है ( भा. ३.४ ३०-३१ ) उदय द्रौपदीस्वयंवर के समय यहाँ उपस्थित था। (म. आ. १७७.१७)
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उद्भव - (सो. यदु.) देवभाग का पुत्र इसकी माता का नाम कंसा | चित्रकेतु तथा वृहद्बल इसके दो ज्येष्ठ बंधु (मा. ९२४.४० ) । इसने बृहस्पति से थे नीतिशास्त्र का अध्ययन किया। यह कृष्ण का प्रिय मित्र था। इसे यादव मंडली में मान प्राप्त था श्रीकृष्ण ने एक बार अपना संदेशा इसे दे कर नंद, यशोदा और गोपियों का समाधान करने के लिये भेजा था।
यादवों के नाश के बाद श्रीकृष्ण भी निजधाम जायेंगे यह जान कर इसे बहुत दु:ख हुआ। कृष्ण ने इसे बदरिकाश्रम जाने कहा किंतु अत्यंत प्रेम के कारण कृष्ण के पीछे पीछे यह सरस्वती नदी के तट पर गया । कृष्ण एक वृक्ष को टेक कर अकेले बैठे थे । उद्धव को देख कर कृष्ण ने कहा- " तुम्हे क्या चाहिये वह मैं जानता हूं ” । तू वसु नामक देव का अवतार है । पहले पहल सृष्टि उत्पन्न करने वाले वसु के यज्ञ में मुझे प्राप्त करने के लिये तुमने मेरा पूजन किया था। यह तेरा
२. (सो. पुरूरवस् ) मत्स्यमतानुसार नहुष का पुत्र । उद्यान - (सो.) भविष्यमतानुसार शतानीक का
पुत्र |
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उद्बलायन—- कश्यप कुल का एक गोत्रकार । उन्नत - चाक्षुष मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक। उन्नतिपक्ष और प्रसुति की कन्या धर्म की स्त्री । उन्नाद -- कृष्ण. एवं मित्रविंदा का पुत्र । एक महारथी । उन्मत्त - अष्टभैरवों में से एक ।
२. अंगराज मायावर्मन् तथा प्रमदा का पुत्र ( भवि. प्रति. २.२१ )
३. रावण का भ्राता । गवाक्ष कपि ने इसका वध किया ( वा. रा. वु. ७०.६५-०४ ) ।
उपकीचक - - सूताधिप केकय एवं मालवी के पुत्र तथा कीचक के कनिष्ठ भाई ( म. वि. १५ परि. १.१९.२५२७) भीम ने कीचक के बाद इनका वध किया ( म. वि. २२. २५ ) ।
उषकेतु -- एक व्यक्ति का नाम (क. सं. १३.१ ) । उपकासेल कामलायन -- कमलपुत्र उपकोसल | सत्यकाम जाबाल के घर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अध्ययन करने के लिये रहा। बारह वर्षों के बाद सत्यकाम ने अन्य शिष्यों का समावर्तन कर स्वगृह जाने की अनुमति दी परंतु उपकोसल का समावर्तन नहीं किया । तत्र सत्यकाम की स्त्रीने उससे कहा कि इस ब्रह्मचारी ने अग्नि की सेवा उत्तम प्रकार से की है । अनि हमें | दोष न दे इसलिये आप इसे ब्रह्मज्ञान बताइये । परंतु इस
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