Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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उत्तंक
प्राचीन चरित्रकोश
उत्पल
कृष्ण ने कहा कि, मेरा स्मरण करते ही तुम्हें जल प्राप्त हो उत्तर भयभीत हो कर अकेला ही भागने लगा। तब मैं अर्जुन जावेगा । एक बार जब इसने स्मरण किया, तब इन्द्र चांडाल हूँ यह बता कर बृहन्नला ने उसे धीरज बँधाया तथा इसे के रूपमें इसे पानी देने आय।। परंतु अपवित्र मान कर | सारथी होने के लिये कह कर स्वयं युद्ध करने लगा। थोडी इसने उसका स्वीकार नहीं किया। वास्तव में इन्द्र अमृत ही देर में अर्जुन ने गायों के सब समूहों को मुक्त कर लिया। देने के लिये आया था। जिस जिस समय तुम्हें पानी की तदनंतर उत्तर जयघोष करता हुआ नगर में गया (म. वि. आवश्यकता होगी उसी समय इस मरुभूमि में सजल | ६२-११)। यह भारतीय युद्ध में पांडवों के पक्ष में था। मेघ आवेंगे ऐसा कृष्ण ने इसे पुनः वर दिया (म. आश्व. | इसने काफी पराक्रम दिखाया । परंतु शल्य के हाथों यह ५२.५४ )। इसने धुंधु दैत्य का वध करने के लिये, मारा गया (म. भी. ४५.४१)। उत्तर की मृत्यु के समय कुवलाश्व नामक राजा को सहायता दी(म. व. १९२.८) । उसकी पत्नी गर्भवती थी। उसे इरावती नामक कन्या (२ जनमेजय परिक्षित देखिये)।
हुई। इसीका विवाह आगे चल कर अभिमन्युपुत्र परीक्षित् उत्तम-चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक। के साथ हुआ। २. एक मनु ।
२. अषाढ उत्तर पाराशर्य देखिये। ३. (स्वा.) उत्तानपाद तथा सुरुचि का पुत्र । यह ३. कश्यपकुल का गोत्रकार। अविवाहित था। इसका वध मृगया में बलाढ्य यक्ष ने उत्तरा-सोम की सत्ताईस पत्नियों में से एक किया (भा. ४.८.९, १०.३)।
२. विराट की कन्या । अर्जुन ने बृहन्नला के रूप में उत्तमा--वर्तमान मन्वन्तर का इक्कीसवा व्यास ।
इसे नृत्यगायनादिकों की शिक्षा दी। गोग्रहणसमय पर. २. मगध देश के देवदास राजा की पत्नी। यमुना में
जो पराक्रम अर्जुन ने दर्शाया, उसके लिये विराट ने इसे स्नान कर के यह मुक्त हो गई (पन. ३.२१६)।
अर्जुन को देने की इच्छा दर्शाई थी। परंतु अर्जुन ने उत्तमोत्तरीय--विसर्गसंधि के संबंध में मत प्रतिपादन अभिमन्यु के लिये इसका स्वीकार किया। जब भारतीय करनेवाला एक आचार्य (ते. प्रा. ८.२०)।
युद्ध में अभिमन्यु की मृत्यू हुई, तब यह गर्भवती थी। उत्तमौजस्-एक पांचालदेशीय राजपुत्र (म. उ. |
अश्वत्थामा ने पृथ्वी को निष्पांडव करने की प्रतिज्ञा कर १९७.३)। भारतीय युद्ध में यह पांडवों के पक्ष में था ऐषिकास्त्र छोडां (म. सौ.१५.३१) । कृष्ण ने उस समय (म.द्रो. २०.१५३;* २४.३६,१०५.८१९*)। यह जब इसके गर्भ का रक्षण किया। इसका पुत्र परीक्षित् (म. पांडवों के शिबिर में सो रहा था, तब अश्वत्थामा ने इसका | वि. ११.१८; भा१.८.१५)। . वध किया (म. सौ. ८.३०-३३)।
उत्तान आंगिरस--संभवतः एक आचार्य ( पं. बा. उत्तर-विराट तथा सुदेष्णा का पुत्र । इसका दूसरा
१.८.११; तै. ब्रा. २.३.२.५) . नाम भूमिंजय था (म. वि. ३३. ९)। यह द्रौपदीस्वयंवर में गया था (म. आ. १७७.८)। गायों का समूह जब
उत्तानपाद-स्वायंभुव मनु के शतरूपा से उत्पन्न दुर्योधन हरण कर ले गया, तब गोपों ने यह वाता उत्तर
पुत्रों में कनिष्ठ ( मत्स्य. ४)। इसे सुनृता या सुनीति को बताई। विराट अन्य स्थान पर युद्ध में मग्न होने के
और सुरुचि ये दो स्त्रियां थीं। सुनीति से कीर्तिवान् एवं कारण गायों को मुक्त करने की जिम्मेदारी उत्तर पर थी।
| ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम इस तरह इसके तीन पुत्र थे अन्तःपुर में उत्तर ने अपने पराक्रम की स्वयं प्रशंसा की तथा ।
(भा. ४.८)। सुरुचि इसे बहुत प्रिय थी (ध्रव देखिये)।
स्वायंभुव मन्वंतर में प्रजापति अत्रि ने इसे दत्तक लिया खेद प्रगट किया कि, सारथि न होने के कारण वह युद्ध
था। इसे सुनृता से चार पुत्र और दो पुत्रियां हुई। करने नहीं जा सकता । परंतु इसकी परीक्षा लेने के लिये द्रौपदी (सैरंध्री) ने कहा कि, अर्जुन (बृहन्नला) तुम्हारा
उनके नाम १. ध्रुव, २. कीर्तिमान् , ३. आयुष्मान्, ४. सारथ्य करेगा। इससे उत्तर को मजबूर हो कर युद्ध में
वसु तथा १. स्वरा, २. मनस्विनी (ब्रह्माण्ड. २.३६.८४जाना पड़ा। परंतु रथ में बैठ कर कौरवों की अफाट सेना ९० ह. व. १.२, ध्रुव देखिये)। के पास गया नहीं. इतने में ही भयभीत होकर यह उत्तानबर्हि (स.) शांति राजा के तीन पुत्रों में बृहन्नला को वापस लौटने के लिये कहने लगा। उस समय | ज्येष्ठ । स्त्रियों में की हुई अपनी प्रशंसा की याद दिलाई । परंतु उत्पल-विदल देखिये ।