Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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उग्रसेन
प्राचीन चरित्रकोश
उतथ्य
ज्येष्ठ पुत्र कंस अत्यंत दुष्ट होने के कारण उसने इसे बंदी- २. (सो. कुरु.) अविक्षित् तथा वाहिनी का पुत्र गृहमें रखा था। कंस का कृष्णद्वारा वध होने के बाद | (म. आ. ८९. ४६)। कृष्ण ने इसे पुनः मथुरा की गद्दी पर बैठाया (भा. १०. उच्चैःश्रवस् कौपयेय--यह कुरुओं का राजा तथा
केशिन् का मामा (चै. उ. ब्रा. ३. २९. १-३)। ४. धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक (म. आ. परि. उजयन-विश्वामित्र का पुत्र (म. अनु. ७.५८ कुं.)। १.४१, पंक्ति. १९)।
उच्छवृत्ति-एक ब्राह्मण । दारिद्य के कारण इसे ५. भारतीय युद्ध का दुर्योधनपक्षीय राजा। पेट भर खाने के लिये भी नहीं मिलता था । एक दिन
६. (सो. कुरु.) दूसरे जनमेजय का पुत्र (म. आ. | जब यह भिक्षा के लिये घूम रहा था, तब इसे एक सेर ८९.४८)।
सत्तू मिला । उसमें से अग्नि तथा ब्राह्मण को दे कर बाकी ७. पांडवो में से अर्जुन का पौत्र परीक्षित उसके चार | अपने पुत्रों को समान भाग में बाँट दिया । यह स्वयं पुत्रों में से एक । जनमेजय का बंधु।
खाना शुरु करे इतने में प्रत्यक्ष यमधर्म ब्राह्मणरूप में ८. स्वर्भानु का अंशभूत क्षत्रिय (म. आ. ३.१; | उसके पास आया तथा खाने के लिये मांगने लगा। ६१. १३)। .
ब्राह्मण ने अपने हिस्से का सत्त इसे दिया परंतु उसे संतोष ९. पुष्करमालिन् देखिये।
न हुआ। तब इसने अपने पुत्रादिकों के हिस्से का सत्तू उग्रसेना--अक्रूर के स्त्रियों में से एक ।
भी इसे दिया । यह देख कर धर्म प्रसन्न हुआ तथा वह उग्रहय--राम के अश्वमेधीय घोड़े का रक्षण करने के | इस ब्राह्मण को सहकुटुंब तथा सदेह स्वर्ग में ले लिये यह लक्ष्मण के साथ गया था (पन. पा. १२)। । गया। आगे चल कर इस पुण्यात्मा के सत्त के जो कण
उग्रा-सिंधु दैत्य की माता का नाम (गणेश. २. भूमिपर गिरे थे उसमें एक नेवला आ कर लोट लगाने १२४)।
लगा । शरीर का जो भाग उस सत्तू को लगा, वह एकदम उग्राय-महिषासुर की ओर का एक असुर । सुवर्णमय हो गया। आगे चल कर वह मेवला धर्म के
उग्रायुध-(सो. द्विमीढ.) भागवत के मतानुसार | यज्ञ में अपने शरीर का दूसरा भाग भी सुवर्णमय हो, नीप का पुत्र । परंतु अन्यों के मतानुसार कृत का पुत्र । | इस इच्छा से गया परंतु उसकी इच्छा पूरी नही हुई. इसे क्षेम्य नामक पुत्र था । इसने १०१ नीपों का नाश | (जै. अ.६६) । मोक्षधर्म कथन के पश्चात . गृहस्थाश्रमी किया । इसने आठ हजार वर्षों तक तपस्या की थी। मानव भी उच्छवृत्ति का पालन करने से मोक्ष प्राप्त कर इसे यम ने तत्त्वज्ञान सिखाया (मत्स्य. ४९. ५८.६९)। सकता है, यह पुरातन कथा भीष्म ने युधिष्ठिर को कान की इसने भल्लाटपुत्र जनमेजय का वध किया था। शंतनु की (म.शां. ३४१-३५३)। कुरुक्षेत्रस्थ उच्छवृत्तिधारी सक्तुप्रेस्थ मृत्यु के बाद इसने सत्यवती की मांग की। इससे
ब्राह्मण के यहाँ त्यक्त पिष्ठ में बदन को घोलने से नकुल क्रोधित हो कर भीष्म ने इसका वध किया (ह. वं. |
का अर्धाग सुवर्णमय हुआ, किन्तु बाकी आधा शरीर १. २०)।
धर्मराज के यज्ञ में उर्वरित अन्न में घोलने से भी सुवर्ण२. धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक (म. आदि. परि. | मय न हो सका। इस प्रकार उच्छवृत्ति की प्रशंसा १.४१; पंक्ति. १६)।
उल्लेखित है (म. आश्व. ९२-९३)। .. ३. भारतीय युद्ध का दुर्योधनपक्षीय एक राजा. उच्छवृत्ति के माने, कपोत के जैसे विनायास मिले हुए।
४. कर्ण के द्वारा मारा गया पांडवपक्षीय एक राजा | दाने चून कर जीवन यापन करना । (म.आश्व.९३.२,५)(म. क. ४०.४६ )। यह द्रौपदी स्वयंवर में था (म. इसे सत्य ऐसा नामान्तर था। इस की पत्नी का नाम आ.७७.३)।
पुष्करमालिनी (म. शां. २६४.६-७). उग्रास्य-महिषासुर के पक्ष का एक दैत्य । इसका
उडुपति-अंगिरस कुल का एक गोत्रकार । वध अंबिका ने किया (मार्क. ८०)।
उतथ्य-अंगिरस का पुत्र । इसकी माता का नाम उचथ्य-उतय्य देखिये।
स्वराज् । इसका श्रद्धा नाम भी मिलता है । परशुराम द्वारा उच्चैःश्रवस्-एक मछुवा राजा । मत्स्यगंधा का | पृथ्वी निःक्षत्रिय करने के पश्चात् , इसने क्षत्रियों का पुनपोषण करनेवाला पिता (म. आ. ९४.६७)। | रुत्थान किया । इसकी भायां ममता । इसका कनिष्ठ भ्राता