Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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इल्वल
प्राचीन चरित्रकोश
ईश्वर
की । वह उसके द्वारा अमान्य की जाने पर आदरातिथ्य के को बताई । नित्य श्राद्ध में अगस्य ने जा कर वातापी को मिस ब्राह्मणों को बुला कर मार डालने का क्रम इसने प्रारंभ पेटमें पचा लिया तथा इल्वल के क्रोध से आक्रमण करते किया। ब्राह्मण का आगमन होते ही यह उसका आदर ही, उसे भी दृष्टि से भस्म कर दिया (वा. रा. अर. करता था । तदनंतर मेष बने हुए अपने वातापी बंधू ११.६८, म. व. ९७.४९. म. ३ *)। परंतु इल्वल को का पाक बना कर उसे भोजन देता था । ब्राह्मण जब जाने परशुराम ने मार डाला (ब्रह्माण्ड ३.६.१८-२२)। लगते थे तब उसका शरीर विदीर्ण करके वातापी बाहर इष--(स्वा. उत्तान.) वत्सर को स्वर्वीची नामक
आता था तथा ब्राह्मण की मृत्यु हो जाती थी। इस प्रकार भाया से उत्पन्न छः पुत्रों में से एक। से इसने सहस्रावधि ब्राह्मणों को मार डाला । एकबार जब २. उत्तम मनु के पुत्रों में से एक । अगस्त्य को द्रव्य की अपेक्षा थी, वह क्रम से श्रुता, ३. सुधामान नामक देवगणों में से एक । अध्न्यश्व तथा त्रसदस्यु नामक तीन राजाओं के पास गया। इष आत्रेय-सृक्तों का द्रष्टा (ऋ. ५.७-८)। परंतु वहाँ द्रव्य प्राप्ति न होने के कारण, उनके सहित यह इष श्यावाश्वि--यह अगस्त्य का शिष्य (जै. उ. इल्वल के पास आया। उसे देख कर नित्यानुसार इसने अगस्य ब्रा. ४१.६.१)। की कपट पूर्वक पूजा कर, उसे भोजन के लिये रख लिया।
।। इषिकहस्त--पराशर कुल का गोत्रकार. अगस्त्य की कपट पूर्वक जान कर संपूर्ण पाक का भक्षण
इषीक--इसने तुंबरु नामक गंधर्व की उपासना करने स्वयं ही कर लिया, तथा वातापि को उदर में जीर्ण किया।।
| के लिये बता कर शिखंडी को पुरुषत्व प्राप्त करा दिया यह जान कर इल्वल अगस्त्य के पास प्राण दान के लिये
(म. आ. ११०.२३ कुं.)। प्रार्थना करने लगा। तब अगत्य ने अभय दे कर उसे | कहा कि हम चारों द्रव्यार्थी है। अतएव द्रव्य दे कर हमें
___ इषरिथ-विश्वामित्र का मूल पुरुष (विश्वामित्र मार्गस्थ करो । तब इसने त्रिवर्ग राजाओं को बिपुल संपत्ति
देखिये)। दे कर अगस्य को उनसे द्विगुणित दी तथा सबको मार्गस्थ. इषुपात्-कश्यप तथा दनु का पुत्र ।' कर ब्राह्मणों का द्वेष छोड़ दिया। इसे बल्वल नामक पुत्र
इषुफलि-अष्टकाकर्म में तंत्र किया जावे ऐसा था (म. व. ९४)।
| इसका मत है (को. सू. १३८.१६)। रामायण में अगस्त्य के सामर्थ्य का वर्णन करते समय | इषुमत्-(सो. यदु, वृष्णि) देवश्रवस् को कंसावती इल्वल तथा वातापि की कथा राम ने लक्ष्मण तथा सीता | से उत्पन्न पुत्र ।
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ईडय--सावर्णि मनु के उत्पन्न होनेवाले पुत्रों में से स्थान पर तुमने तप किया, उस स्थान को ज्ञानवापी एक।
कहेंगे (स्कंद २.४.१.३३)। । ईदृश-दितिपुत्र मरुतों के पांचवे गणों में से एक २. देवों के हिरण्याक्ष के साथ हुए युद्धमें इसका वध (ब्रह्माण्ड ३.५.९६)।
वायु ने किया (पद्म. सु. ७५) ईलिन-(सो.) तंसु का पुत्र (म. आ. ८८; इलिल । ईश्वर-सुरभि तथा कश्यप के पुत्रों में से एक । देखिये)।
२. (सो. पूरु.) पूरु तथा पौष्टी का पुत्र (म. आ.८८) ईशान-इस नाम के एक संन्यासी ने विश्वेश्वर की ३. भारतीय युद्ध में दुर्योधन पक्षीय राजा । यह क्रोध आराधना की। शंकर ने प्रसन्न हो कर कहा कि जिस | वश असुरांश से जन्मा था (म. आ. ६१.६०)।