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युगबीर-निवन्धावली
और धार्मिक पुरुष समझकर 'गधर्वसेना' नामकी विद्याधर-कन्या उसके समर्थ भाइयो-द्वारा विवाह कर देनेके लिये सीपी गई और जिसे चारुदत्तने पुत्रीकी तरह रक्खा। चारुदत्तके पीछे वमन्तसेना वेश्या उसकी माताके पास आती रही और माताकी सेवा-शुभपा करते हुए नि सकोच भावसे उसके वहाँ रहनेपर कहीसे भी कोई आपत्ति नहीं की गई, चारुदत्तके विदेशसे वापिस आनेपर मातादिक कुटुम्बीजन और चम्पापुरी नगरीके सभी लोग प्रसन्न हुए
और उन्होने चारुदत्तके साथ महती तथा अद्भुत प्रीतिको धारण किया । चारुदत्तने उस वसतमेना वेश्याको अगीकार किया जो उसीको एक पति मानकर, उसके घरपर रहने लगी थी, 'किमिच्छक' दान देकर दीनो और अनाथो आदिको सतुप्ट किया, गधर्वसेनाकी प्रतिज्ञानुसार उसका पति निश्चत करनेके लिये अनेक वार गर्वविद्याके जानकार विद्वानोकी सभाएं जुटाई, प्रतिज्ञा पूरी होनेपर वसुदेवके साथ उसका विवाह किया, और वरावर जैनधर्मका पालन करते हुए अन्तको जनमुनि दीक्षा धारण की । इसके सिवाय, वसुदेवजीने चारुदत्तका वेश्या
१. ब्रह्मनेमिदत्तके कथाकोशमें चम्पापुरीके लोगो आदिकी इस प्रीतिका उल्लेख निम्न प्रकारसे पाया जाता है :
भानु श्रेष्टी सुभद्रा सा चारुदत्तागमे तदा।
अन्ये चम्पापुरीलोका प्रीति प्राप्ता महागुताम् ॥ २ चारुदत्तः सुधीश्चापि भुक्त्वा भोगान्स्वपुण्यत ।
समाराध्य जिनेंद्रोक्तं धर्म शर्मकरं चिर ॥१२॥ ततो वैराग्यमासाद्य सुन्दराख्यसुताय च । दत्वा श्रेष्टिपदं पूतं दीक्षा जैनेश्वरी श्रितः ॥१३॥
नेमिदत्त-कथाकोश,