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पापका बाप
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हो जाता है। बहुतसे दुष्टोने इस लोभ होके कारण अपने मातापिता और सहोदर तकको मार डाला है। आज कल जो कन्या. विक्रयकी भयकर प्रथा इस देशमे प्रचलित है और प्राय ६-१० वर्षकी छोटी-छोटी निरपराधिनी कन्यायें भी साठ-साठ वर्षके बुड्ढोके गले बाँधी जा रही हैं वह सब इसी लोभ-नदीकी वाढ है। इसी प्रकार इस लोभका ही यह प्रताप है जो बाजारोमे शुद्ध घीका दर्शन होना दुर्लभ हो गया है-धीमे साँपो तककी चर्बी मिलाई जाती है, तेल मिलाया जाता है और वनस्पति घी तथा कोकोजम आदिके नाम पर न मालूम और क्या-क्या अलावला मिलाई जाती है, जो स्वास्थ्यके लिये बहुत ही हानिकारक है। दवाइयो तकमे मिलावट की जाती है और शुद्ध स्वदेशी चीनीके स्थानपर अशुद्ध तथा हानिकारक विदेशी चीनी व ती जाती है और उसकी मिठाइयां बनाकर देशी चीनीकी मिठाइयोके रूपमे बेची जाती है। बाकी इसकी बदौलत तरह-तरहकी मायाचारी, ठगी और दूसरे क्रूर कर्मोकी बात रही सो अलग। सच पूछिये तो ऐसे-ऐसे ही कुकर्मोंसे यह भारत गारत हुआ है। और उसका दिन-पर-दिन नैतिक, शारीरिक तथा आध्यात्मिक पतन होता जाता है।
पहले भारतमे ऐसा भी समय हो चुका है कि, राजद्वारमें आम तौरपर या किसी कठिन न्यायके आ पडनेपर नगर-निवासी तथा प्रजाके मनुष्य बुलाये जाते थे और उनके द्वारा पूर्ण रूपसे ठोक और सत्य न्याय होता था। परन्तु अफसोस | आज भारतकी यह दशा है कि न्यायको जड काटनेके लिए प्राय हर शख्स कुल्हाडी लिये फिरता है, जगह-जगह रिश्वतका बाजार गरम है, अदालतोमें न्याय करनेके लिये नगर-निवासियोका बुलाया जाना तो दूर रहा, एक भाई भी दूसरे भाईके ईमान