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जैन कालोनी और मेरा विचार - पत्र
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हृदयोपर अन्यथा सस्कारोका जो खोल चढा हुआ है वह सब चूरचूर होगा । और तभी समाजको वह दृष्टि प्राप्त होगी जिससे वह धर्मके वास्तविक स्वरूपको देख सकेगी। अपने उपास्य देवताको ठीक रूपमे पहचान सकेगी, उसकी शिक्षाके मर्मको समझ सकेगी और उसके आदेशानुसार चलकर अपना विकास सिद्ध कर सकेगी। इस तरह समाजका रुख ही पलट जायेगा और वह सच्चे अर्थोमे एक धार्मिक समाज और एक विकासोन्मुख आदर्श समाज बन जायगा । और फिर उसके द्वारा कितनोका उत्थान होगा, कितनोका भला होगा, और कितनोका कल्याण होगा, यह कल्पनाके बाहरकी बात है । इतना वडा काम कर जाना कुछ कम श्रेय, कम पुण्य अथवा कम धर्मकी बात नही हैं । यह तो समाजभरके जीवनको उठानेका एक महान आयोजन होगा । इसके लिये अपनेको बीजरूप में प्रस्तुत कीजिये । मत सोचिये कि मैं एक छोटासा वीज हूँ । बीज जब एक लक्ष्य होकर अपनेको मिट्टी मे मिला देता है, गला देता और खपा देता है, तभी चहुँ ओरसे अनुकूलता उसका अभिनन्दन करती है और उससे वह लहलहाता पौधा तथा वृक्ष पैदा होता है जिसे देखकर दुनियाँ प्रसन्न होती है, लाभ उठाती है आशीर्वाद देती है, और फिर उससे स्वत. ही हजारो बीजोकी नई सृष्टि हो जाती है । हमे वाक्पटु न होकर कार्यपटु होना चाहिये, आदर्शवादी न बनकर आदर्शको अपनाना चाहिये और उत्साह 'तथा साहसकी वह अग्नि प्रज्वलित करनी चाहिये जिसमे सारी निर्बलता और सारी कायरता भस्म हो जाय । आप युवा हैं, धनाढ्य हैं, धनसे अलिप्त हैं, प्रभावशाली हैं, गृहस्थ के बन्धन से मुक्त है और साथ ही शुद्धहृदय तथा विवेकी है, फिर आपके लिये दुष्कर कार्य क्या हो सकता है ? थोडी-सी स्वास्थ्यकी
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