Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 2
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 855
________________ भवाऽभिनन्दी मुनि और मुनि-निन्दा ८४७ ही वस्तु-तत्त्वको उसके असली रूपमे देखने नही देता, इसीसे जो अभिनन्दनीय नहीं है उसका तो अभिनन्दन किया जाता है और जो अभिनन्दनीय है उससे द्वेष रक्खा जाता है । इस पद्यमे जिन्हे धन्य, महात्मा और कल्याणफल-भागी बतलाया है उनमें अविरतसम्यदृष्टि तकका समावेश है। स्वामी समन्तभद्रने सम्यग्दर्शनसे सम्पन्न चाण्डाल-पुत्रको भो 'देव' लिखा है-आराध्य बतलाया है; और श्री कुन्दकुन्दाचार्यने सम्यग्दर्शन भ्रष्टको भ्रष्ट ही निर्दिष्ट किया है, उसे निर्वाणकी सिद्धि-मुक्तिकी प्राप्ति नही होती। इस सब कथनसे यह साफ फलित होता है कि मुक्तिद्वेषी मिथ्यादृष्टि भवाभिनन्दो-मुनियोकी अपेक्षा देशव्रती श्रावक और अविरत-सम्यग्दृष्टि गृहस्थ तक धन्य है, प्रशसनीय है तथा कल्याणके भागी हैं। स्वामी समन्तभद्रने ऐसे ही सम्यग्दर्शनसम्पन्न सद्गृहस्थोके विषयमे लिखा है : गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो निर्मोहो, नैव मोहवान् । अनगारो, गृही श्रेयान् निर्मोहो, मोहिनो मुनेः॥ 'मोह (मिथ्यादर्शन') रहित गृहस्थ मोक्षमार्गी है। मोहसहित (मिथ्या-दर्शन-युक्त) मुनि मोक्षमार्गी नही है। (और इसलिये) मोही-मिथ्यादृष्टि मुनिसे निर्मोही-सम्यग्दृष्टि गृहस्थ श्रेष्ठ है।' इससे यह स्पष्ट होता है कि मुनिमात्रका दर्जा गृहस्थसे ऊँचा नही है, मुनियोमें मोही और निर्मोही दो प्रकारके मुनि होते हैं। मोही मुनिसे निर्मोही गृहस्थका दर्जा ऊँचा है—यह १. दसणभट्टा भट्टा दसणभट्टस्स णत्थि णिव्वाणं । ( दंसणपाहुड ) २. मोहो मिथ्यादर्शनमुच्यते-रामसेन, तत्त्वानुशासन ।

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