Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 2
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 867
________________ न्यायोचित विचारोंका अभिनन्दन ८५९ निष्ठा एक उच्च तथा कल्याणरूप वृत्ति है । समझदारोंको कल्याणकामी बनकर बाडा निष्ठा त्याग सत्यनिष्ठा प्रकट करना चाहिए । सम्प्रदाय चुस्तता मोक्षका मार्ग नही है। मोक्षका मार्ग है वीतरागताकी साधना, जिसका आरम्भ सत्यनिष्ठामेसे होता है ।" इन सद्विचारोके अनन्तर मुनिजीने 'सुसगठन के मार्गको सरल बनाने के लिए सब शाखाओ - सम्प्रदायोको कुछ-न-कुछ छोडना पडता ही है' 'ऐसा लिखकर किसको क्या छोडने की जरूरत है, इस विषयमे अपने जो विचार व्यक्त किये हैं उनमें के प्रमुख विचार इस प्रकार हैं : ( १ ) " श्वेताम्बर मूर्तिपूजक वर्गको जिनप्रतिमापर अगरचना करना बन्द कर देना चाहिए, मुकुट अथवा कोई भी आभूषण जिनप्रतिमापर नही लगाना चाहिए। यह परिवर्तन शास्त्रानुकूल होनेके कारण श्वेताम्बर मूर्तिपूजक वर्गको करना उचित है ।" इसके समर्थनमे जो फुटनोट दिया है वह इस प्रकार है : " वीतराग भगवान् की मूर्तिपर वीतरागका दिखावा होना उचित है । यह सहज ही समझमे आनेलायक बात है । जिनेन्द्र देवकी ध्यानस्थ वीतराग योगीकी आकृतिवाली मूर्तिपर वीतरागताके साथ संगत नही, वीतराग मूर्तिको न शोभे ऐसा दिखावा अगरचना द्वारा करनेमे आता है । इसे बन्द कर दिया जाए यही शोभनीय है ।" ( २ ) " स्थानकवासी और तेरापथी वर्गको मुखपर मुखवस्त्रिका बाँधना बन्द करना चाहिए। उसे हाथमे रखकर उसका उपयोग करना चाहिए । यह परिवर्तन जरा भी हिचकिचाहट बिना प्रसन्नता से किया जाय, क्योकि इसमे शास्त्राज्ञाका कोई भी अटकाव नहीं है ।"

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