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युगवीर - निबन्धावली
ग्रन्थके सब वाक्य अपने असली रूपने सभी विद्वानोको समयपर उपस्थित नही होते - ओर इसलिये उन्हे अच्छी जाँच पडताल के वाद ही ग्रहण किया जाना चाहिये - यो ही बिना परीक्षाके उनके कथनमात्रसे प्रमाण रूप में अंगीकार न कर लेना चाहिये। मैं समझता हूँ किसी महान् आचार्यादिके वाक्यको प्रमाणमे देते हुए उसे मूलरूपमे उद्धृत न करके मात्र अनुवादरूपमे उपस्थित करनेकी यह प्रणाली अच्छी नही -- खतरेसे प्राय खाली नही है ।
१. जैन सन्देश १८ अगस्त १९६६ ।