Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 2
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 872
________________ ८६४ युगवीर- निबन्धावली काफी द्वेष रखनेवाला - उसकी भरपेट निन्दा करने वाला - भी यदि मध्यस्थ वृत्ति हुआ उपत्तिचक्षुसे --मात्सर्य के त्यागपूर्वक युक्तिसंगत समाधानकी दृष्टिसे उसका अवलोकन - परीक्षण करता है तो अवश्य ही उसका मानशृग खण्डित हो जाता है ---- सर्वथा एकान्तरूप मिथ्यामतका आग्रह छूट जाता है---- और वह अभद्र से समन्तभद्र बन जाता है— मिथ्यादृष्टिसे सम्यकदृष्टि होकर जिनशासनका अनुयायी हो जाता है । इसी बातको स्वामी समन्तभद्रने युक्त्यनुशासन के निम्न पद्यमे बडी ही दृढ श्रद्धा के साथ उद्घोषित किया है Bac - कामं द्विषन्नप्युपत्तिचक्षुः समीक्ष्यतां ते समदृष्टिरिष्टम् । त्वयि ध्रुवं खण्डितमानशृंगो भवत्यभद्रोऽपि समन्तभद्रः ॥ १. श्रमण, अगस्त १९६६ । अत अपने को ठीक करके, जिनशासनके प्रचारमे जरा भी सकोच तथा सन्देह करनेकी जरूरत नही है - वह अवश्य सफल होगा । आजकल तो समय भी उसके बहुत अनुकूल है, लोगोकी मनोवृत्ति बदल रही है — पक्षपातकी भावनाएं दूर होकर उपपत्ति चक्षु खुलती जा रही है - और प्रचारके साधन भी इतने अधिक उपलब्ध तथा सुलभ हो रहे हैं, जो पहले कभी प्राप्य नही थे । ऐसे सुअवसरको पाकर भी यदि हम शासन के प्रचार कार्य मे अग्रसर न हुए तो यह हमारे लिए एक दुर्भाग्य की बात होगी और यह समझ लेना अनुचित न होगा कि हमारे अन्त करणमे जिनशासनकी सच्ची भक्ति नही है - भक्ति के ऊपरी कोरे गीत ही गीत हैं ।

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