Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 2
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 860
________________ ८५२ युगवीर- निबन्धावली और आगमकी अवहेलना - जैसे कार्योके विरोध मे कोई आवाज उठाई जाती है तो उसका कोई समुचित उत्तर न देकर प्राय मुनि - निन्दाका आरोप लगा दिया जाता है, और इस तरह मुनि - निन्दाका आरोप उन लोगोंके हाथका एक हथियार बन गया है, जिन्हे कुछ भी युक्तियुक्त कहते नही बनता । मुनिनिन्दाका फल कुछ कथाओमे दुर्गति जाना और बहुत कुछ दुखकष्ट उठाना चित्रित किया गया है, इस भय से ऐसे मुनियोकी आगम-विरुद्ध दूषित प्रवृत्तियोको जानते हुए भी हर किसीको उनके खिलाफ मुँह खोलने तकका साहस नही होता । भयके वातावरणमे सारा विचार - विवेक अवरुद्ध हो जाता है और कर्तव्यके रूपमें कुछ भी करते - धरते नही बनता। नतीजा इसका यह हो रहा है कि ऐसे मुनियोका स्वेच्छाचार बढता जाता है, जिसके फलस्वरूप समाजमे अनेक कठिन समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं । समाजके सगठनका विघटन हो रहा है, पार्टीबन्दियाँ शुरू हो गई हैं और पक्ष-विपक्षकी खीचातानीमे सत्य कुचला जा रहा है । यह सब देखकर चित्तको बडा ही दुःख तथा अफसोस होता है और समाजके भविष्य की चिन्ता सामने आकर खडी हो जाती है । समझ मे नही आता, कि जो महान् जैनाचार्योके उक्त कथनानुसार परमधर्मका अनुष्ठान करते हुए भी जैनमुनि ही नही, मुमुक्षु नही, मोक्षमार्गी नही, सासारिक प्रवृत्तियोका अभिनन्दन करनेवाले भवाभिनन्दी लौकिक-जन हैं उनके विषय में किसी सत्य समालोचकपर मुनिनिन्दाका आरोप कैसे लगाया जा सकता है ? मुनि हो तो मुनि-निन्दा भी हो सकती है, मुनि ही नही तब मुनि - निन्दा कैसी ?

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