Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 2
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 842
________________ ८३४ युगवीर - निबन्धावली खराबी से निराश होने जैसी बातें करना आपको शोभा नहीं देता । आप फलकी आतुरताको पहले से ही हृदयमे स्थान न देकर दृढ सङ्कल्प और Full will power के साथ खडे हो जाइये, सुखी आराम तलब जैसे— जीवनका त्याग कीजिये और कष्टसहिष्णु बनिये, फिर आप देखेंगे अस्वस्थता अपने आप ही खिसक रही है ओर आप अपने शरीर मे नये तेज, नये बल और नई स्फूर्तिका अनुभव कर रहे है । दूसरोके उत्थान और दूसरोके जीवनदानकी सच्ची सक्रिय भावनाएँ कभी निष्फल नही जाती- उनका विद्युतका-सा असर हुए बिना नही रहता । यह हमारी अश्रद्धा है अथवा आत्मविश्वासकी कमी है जो हम अन्यथा कल्पना किया करते हैं । मेरे खयालमे तो जो विचार परिस्थितियो को देख कर आपके हृदयमें उत्पन्न हुआ है वह बहुत ही शुभ है, श्रेयस्कर है और उसे शीघ्र ही कार्यमे परिणत करना चाहिये । जहाँ तक मैं समझता हूँ जैन कालोनीके लिये राजगृह तथा उसके आसपासका स्थान बहुत उत्तम है । वह किसी समय एक बहुत बड़ा समृद्धिशाली स्थान रहा है, उसके प्रकृत्तिप्रदत्त चश्मे - गर्म जलके कुण्ड - अपूर्व है । स्वास्थ्यकर है, और जनताको अपनी ओर आकर्षित किये हुए है । उसके पहाडी दृश्य भी बड़े मनोहर हैं और अनेक प्राचीन स्मृतियो तथा पूर्व गौरवको गाथाओको अपनी गोद मे लिये हुए है । स्वास्थ्यकी दृष्टिसे यह स्थान बुरा नही है । स्वास्थ्य सुधार के लिये यहाँ लोग महीनो आकर ठहरते है । वर्षाऋतुमे मच्छर साधारणत. सभी स्थानोपर होते है—यहां वे कोई विशेषरूपसे नही होते और जो होते है उसका भी कारण सफाईका न होना है । अच्छी कालोनी बसने और सफाईका समुचित प्रबन्ध रहनेपर यह शिकायत भी सहज ही दूर

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