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देवगढ़के मन्दिर-मूर्तियोंकी दुदशा : ४ :
झासी जिलेमे ललितपुरसे दक्षिणकी ओर जाखलौन स्टेशनसे ६ मीलकी दूरीपर 'देवगढ' नामका एक अतिशय क्षेत्र बेतवा नदीके मुहानेपर स्थित है। मैने स्वय ८ नवम्बर सन् १९२५ को इस पवित्र क्षेत्रके दर्शन किये, परन्तु दर्शन करके इतनी प्रसन्नता नहीं हुई जितनी कि हृदयमे वेदना उत्पन्न हुई । प्रसन्नता तो केवल इतीही थी कि मदिरोके साथ मूर्तियां बडी ही भव्य, मनोहर तथा दशनीय जान पडती थी-ऐसे खर पाषाणकी इतनी सुन्दर, सुडौल और प्रसन्नवदन मूर्तियाँ अन्यत्र बहुत ही कम देखनेमे आई थी और उन्हे देखकर अपने अतीत गौरवका-अपने अभ्युदयका--तथा अपने शिल्पचातुर्यका स्मरण हो आता था। परन्तु मदिर-मूर्तियोकी वर्तमान दुर्दशाको देखकर हृदय टूक टूक हुआ जाता था-उनकी सुन्दरता जितनी अधिक थी उनकी दुर्दशा उतनी ही ज्यादा कष्ट देती थी। जब मैं देखता था कि एक मदिरके पास दूसरा मदिर धराशायी हुआ पडा है, उसकी एक मूर्तिकी भुजा टूट गई है, दूसरोकी टाँग अलग हुई पडी है, तिसरीके मस्तकका ही पता नही है, सही सलामत बची हुई मूर्तियां भी कुछ अस्त-व्यस्त रूपसे खुले मैदानमे पडी हुई पशुओ आदिके आघात सह रही है, मदिरका खम्भा कही, तो शिखरका पत्थर कही पडा है और उन खडहरोपर होकर जाना पडता है, जो मदिर अभी तक धराशायी नही हुए, उनके आँगनोमे और उनकी छतो आदि पर गजो लम्बे घास खडे हैं, खैर-करोदी आदिके वृक्ष भी छतोतक