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युगवीर - निवन्धावली
सज्जनोका अधिवास हो जो अपने जीवनको जैनजीवन के रूपमें ढालनेके लिये उत्सुक हो, जहाँपर अधिवासियोकी प्राय: सभी जरूरतोको पूरा करनेका समुचित प्रबन्ध हो और जीवनको ऊँचा उठान के यथासाध्य सभी साधन जुटाये गये हो, जहाँ के अधिवासी अपनेको एक ही कुटुम्बका व्यक्ति समझें, एक ही पिताकी सन्तान के रूप में अनुभव करें, और एक दूसरे के दुखसुखमे बराबर साथी रहकर पूर्णरूप से सेवाभावको अपनाएँ तथा किसीको भी उसके कष्टमे यह महसूस न होने देवें कि वह वहाँ पर अकेला है ।
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समय- समयपर बहुत से सज्जनोके हृदय में धार्मिक जीवनको अपनानेकी तरगें उठा करती हैं और कितने ही सद्गृहस्थ अपनी गृनस्थीके कर्तव्योको बहुत कुछ पूरा करनेके बाद यह चाहा करते हैं कि उनका शेष जीवन रिटायर्डरूपमें किसी ऐसे स्थानपर और ऐसे सत्सङ्गमे व्यतीत हो जिससे ठीक-ठीक धर्मसाधन और लोक सेवा दोनो ही कार्य बन सकें । परन्तु जब वे समाजमे उसका कोई समुचित साधन नही पाते और आसपासका वातावरण उनके विचारोके अनुकूल नही होता तब वे यो ही अपना मन मसोसकर रह जाते हैं - समर्थ होते हुए भी बाह्य परिस्थितियो के वश कुछ भी कर नही पाते, और इस तरह उनका शेष जीवन इधर उधरके धन्धोमे फँसे रहकर व्यर्थही चला जाता है । और यह ठीक ही है, बोजमे और अच्छा फलदार वृक्ष बननेकी शक्तिके होते हुए भी उसे यदि समयपर मिट्टी पानी और हवा आदिका समुचित निमित्त नही मिलता तो उसमे अकुर नही फूटता और वह यो ही जीर्णशीर्ण होकर नकारा हो जाता है । ऐसी हालत मे समाजकी
अकुरित होने